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उपद्रव जाँच समितिके सामने गवाही


मैं समझता हूँ कि अन्य स्थानोंकी तरह भारत में भी कानून-विशेषके न्यायसंगत अथवा अन्यायपूर्ण होने के सम्बन्धमें लोगोंमें मतभेद तो रहता ही है?

हाँ; और यहीं कारण है बल्कि यही मुख्य कारण है कि इस आन्दोलन में हिंसाको कोई स्थान नहीं दिया गया है। सत्याग्रही अपने विरोधीको स्वतन्त्र विचार और सत्यकी स्वानुभूतिका वही अधिकार देता है जो वह अपने लिए सुरक्षित रखता है। क्योंकि उसे इस बातका भान है कि वह सत्यके लिए लड़ना चाहता है। इसलिए वह अपनी लड़ाई स्वयं कष्ट झेलकर ही लड़ेगा।

हिंसा के सवालपर तो आपको जो कुछ कहना हो, बादमें कहिएगा। मैं तो इस सवालपर सरकारका अस्तित्व कायम रखनेके दृष्टिकोणसे विचार कर रहा था। अगर कोई जन-समूह सरकारके विरुद्ध उठ खड़ा हो और वह क्या सही है और क्या गलत इस सम्बन्ध में सरकारके मतको स्वीकार न करके एक स्वतन्त्र समितिके विचारोंका ही आदर करे तो क्या सरकारका अस्तित्व कायम रखना सम्भव होगा?

मैं तो समझता हूँ, यह सर्वथा सम्भव होगा, और दक्षिण आफ्रिकाके आठ वर्षोंके लगातार संघर्षके अनुभव के आधारपर मैंने देखा कि यह सम्भव है। जनरल स्मट्सको इस संघर्षका पूरा दौर झेलना पड़ा था और अन्तमें मैंने उन्हें यह कहते सुना कि अगर सभीका आचरण सत्याग्रहियोंके जैसा ही हो तो उन्हें कोई शिकायत नहीं रह जायेगी।

यह बात तो एक संघर्ष-विशेषसे सम्बन्धित थी। उसमें कोई भी बात आपत्तिजनक नहीं थी और जहाँतक मुझे याद है—वैसे हो सकता है मैं गलत होऊँ—उस संघर्ष में ऐसी किसी शपथकी बात नहीं थी जैसी यहाँ है।

जी नहीं, उस संघर्ष में भी थी। प्रत्येक सत्याग्रही सरकारको जनताकी इच्छाके सामने झुकाने के लिए ऐसे सभी कानूनोंका विरोध करनेको बँधा हुआ था जिन्हें वह अन्यायपूर्ण मानता था और जो फौजदारी ढंगके नहीं थे।

लेकिन अपनी वर्तमान प्रतिज्ञामें[१] तो आप एक कदम और आगे बढ़ गये हैं। क्योंकि सत्याग्रहीको, जिन कानूनोंको वह स्वयं अन्यायपूर्ण समझता है उनकी नहीं बल्कि जिन्हें एक समिति विशेष अन्यायपूर्ण समझती है, उनकी अवज्ञा करनी है?

  1. यह प्रतिज्ञा सत्याग्रह सभाकी अहमदाबादमें हुई २३ फरवरीकी बैठकमें तैयार किये गये घोषणा पत्रका अंश थी और उसका पाठ इस प्रकार था : "हमारी विवेकपूर्ण राय है कि १९१९ के भारतीय दण्ड विधि (संशोधन) विधेयक संख्या १ और दण्ड विधि (आपातिक अधिकार) विधेयक संख्या २ नामक विधेयक अन्यायपूर्ण, स्वातन्त्र्य तथा न्यायके सिद्धान्त और व्यक्तियोंके बुनियादी अधिकारोंके लिए, जिनपर सम्पूर्ण समाज तथा स्वयं राज्यकी सुरक्षा के आधार हैं, घातक तथा ध्वंसकारी हैं। अतः हम संकल्प करते हैं कि यदि उन विधेयकोंको कानूनका रूप दिया गया तो जबतक उनको वापस नहीं ले लिया जायेगा तबतक हम इन और, इसके बाद नियुक्त होनेवाली समिति जिन्हें इस योग्य समझेगी, ऐसे अन्य कानूनोंकी सविनय अवज्ञा करते रहेंगे; और साथ ही हम संकल्प करते हैं कि इस संघर्षमें हम पूरी निष्ठाके साथ सत्यका पालन करेंगे और हिंसा नहीं करेंगे—किसीकी भी जान-मालको किसी प्रकारका नुकसान नहीं पहुँचायेंगे।"