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उपद्रव जाँच समिति के सामने गवाही

कीमत पर भी हो, देशमें इस प्रकारका आन्दोलन जारी रहना चाहिए ताकि वह देशके वातावरणको विशुद्ध बनाता रहे।

रौलट विधेयक सम्बन्धमें हमें बताया गया है कि भारतमें इनका बड़े व्यापक और विस्तृत पैमानेपर विरोध किया जा रहा है। इन विधेयकोंपर, भारतीय या यूरोपीय दृष्टिकोणको अलग रखकर, तनिक स्वतन्त्र रूपसे विचार कीजिए। क्या आप इनके विरुद्ध संक्षेपमें अपनी आपत्तिका सार बतायेंगे?

जब मैं रौलट कमेटीकी रिपोर्ट पढ़ते-पढ़ते उसके अन्तमें पहुँचा और मेरी समझ में आया कि ये कानून जिनका उसमें पूर्वाभास दिया गया था, कैसे होंगे तो मुझे लगा कि समितिने जो तथ्य दिये हैं, उनकी रोशनी में तो इन कानूनोंकी जरूरत नहीं है। और जब मैंने स्वयं उन कानूनों को पढ़ा तो महसूस किया कि ये मानव-स्वातन्त्र्यको इतना अधिक प्रतिबन्धित कर देते हैं कि कोई भी आत्मसम्मानी व्यक्ति या राष्ट्र इस बातको बरदाश्त नहीं कर सकता कि ऐसे कानून उसकी स्थायी विधि-संहितामें स्थान प्राप्त करें। और जब मैंने इसपर विधान परिषद् में हुई बहसका हाल पढ़ा तो मुझे लगा कि इसके प्रति विरोधकी भावना बहुत ही व्यापक है और जब मैंने यह देखा कि उस भावना या विरोधकी सरकार उपेक्षा कर रही है तो मुझे लगा कि एक आत्मसम्मानी व्यक्ति और इस विस्तृत साम्राज्य के सदस्य के रूपमें अब इस कानूनका अपनी शक्ति-भर विरोध करनेके अलावा मेरे लिए और कोई रास्ता नहीं रह गया है।

जहाँतक इस कानूनके उद्देश्यका सम्बन्ध है, क्या आपको इसमें कोई सन्देह है कि उसका उद्देश्य सिर्फ क्रान्तिकारियों और अराजकतावादियोंके अपराधों को रोकना ही है?

मुझे इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है कि उद्देश्य ऊँचा है।

तो क्या आप यह स्वीकार करते हैं कि इसका उद्देश्य काफी ऊँचा है?

पूरी तरह।

तो आपकी शिकायत निश्चय ही इसके लिए अख्तियार किये गये तरीकोंके खिलाफ होगी?

बिल्कुल ऐसा ही है।

अगर मैंने आपकी बातको ठीक समझा है तो आपको जिस बातकी शिकायत है वह यह कि कार्यपालिका (एक्जीक्यूटिव) को, वह अबतक जितनी सत्ताका उपयोग करती रही है, उससे अधिक सत्ता दे दी गई है।

हाँ, बात ऐसी ही है।

मेरा खयाल है कार्यपालिकाको भारत रक्षा अधिनियम के अन्तर्गत ये अधिकार यूरोपीय युद्धके दौरान भी प्राप्त थे?

हाँ, यह सही है। भारत रक्षा अधिनियम एक आपातिक विधान था। भारत रक्षा अधिनियमका उद्देश्य उस समय किसी भी विचारधाराके पोषकों द्वारा हिंसात्मक कार्रवाई करने का जो खतरा था उसे दबाने के लिए हर आदमीका सहयोग प्राप्त करना था, और लोगोंने वास्तवमें बहुत ही अरुचिके साथ उस अधिनियमको स्वीकार किया था, लेकिन जैसा कि मैंने समझा, रौलट कानून बिलकुल भिन्न प्रकारका है। इसके