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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अतिरिक्त इस अवसरपर लोगोंको भारत रक्षा कानूनको व्यवहार रूप में देख चुकनेके अनुभवका लाभ भी प्राप्त था।[१]

अब मान लीजिए, रौलट अधिनियमको कार्य रूप दिया जानेको है; तो सबसे पहले तो स्थानीय सरकारको इस बातकी पूरी प्रतीति हो जानी चाहिए कि यहाँ सचमुच अराजकताकी स्थिति वर्तमान है, और दूसरे भारत सरकारको भी यह प्रतीति कर लेनी होगी। क्या आपको तब भी इसमें कोई गम्भीर आपत्ति होगी?

बहुत ही गम्भीर! विधायककी हैसियतसे में यह अधिकार एक ऐसी कार्यपालिकाके हाथोंमें कभी नहीं दूँगा जिसे मैंने बार-बार अपने कर्तव्य में चूकते देखा है। मैंने देखा है कि भारत सरकारकी कार्यपालिकाने कई बार पागलोंकी-सी कार्रवाइयों की हैं। मैं ऐसी किसी सरकारको कभी भी ऐसी कोई निरंकुश सत्ता नहीं दूँगा।

तब आपकी आपत्ति सचमुच यह है कि आप मानते हैं, भारत सरकारने एक 'अच्छे उद्देश्य की पूतिके लिए गलत उपाय अपनाया। उस हालत में उसका हल ढूंढनेका, संवैधानिक दृष्टिकोणसे, क्या यह उचित उपाय नहीं है कि सरकारको इस कानूनकी अनुपयुक्तताकी प्रतीति करायी जाये और इसमें सुधार करवा दिया जाये?

ऐसा करानेकी कोशिश करके तो मैंने देख लिया। लॉर्ड चेम्सफोर्डसे और जिन अन्य अंग्रेज अधिकारियोंसे मिलनेका मुझे अवसर मिला उन सबसे मैंने हाथ जोड़कर मिन्नतें कीं और मैंने उनके सामने अपना दृष्टिकोण भी प्रस्तुत किया। और मुझे यह कहते हुए हर्षका अनुभव हो रहा है कि उनमें से कुछने मेरे दृष्टिकोणको स्वीकार भी किया, लेकिन उन्होंने कहा कि ये सिफारिशें रौलट समितिने की हैं और हम लोग इसमें कुछ नहीं कर सकते। मेरा खयाल है, हमने सभी दरवाजे खटखटाकर देख लिये।

लेकिन अगर कोई ईमानदार विरोधी आपके विचारोंसे सहमत नहीं है, तो आप उसे अपने दृष्टिकोणके सही होनेकी प्रतीति एकाएक करवा देनेकी आशा नहीं कर सकते। आपको तो ऐसा धीरे-धीरे ही करना होगा?

जी हाँ।

लेकिन इस कानूनका या अन्य जिन कानूनोंको आप चाहें उनका पालन करनेसे इनकार करना क्या उस उद्देश्यकी पूर्तिका बहुत सख्त तरीका नहीं है?

मैं आदरपूर्वक कहूँगा कि नहीं। अगर मेरे पिता भी मुझपर कोई ऐसा नियम लाद दें जिसे मेरी अन्तरात्मा स्वीकार नहीं करती तो मैं समझता हूँ उनसे मेरा विनयपूर्वक यह कह देना तो कमसे कम सख्त तरीका होगा कि "पिताजी, में इसका पालन करनेमें असमर्थ हूँ।" और वैसा करके मैं अपने पिताके साथ न्याय ही करूँगा, और कुछ नहीं। अगर समितिकी शानमें यह गुस्ताखी न मानी जाये तो मैं कहूँगा कि मैंने इसी नियमका पालन अपने घरेलू जीवनमें भी किया है और मैंने देखा कि वह अधिक से अधिक लाभदायक सिद्ध हुआ। मैंने यह बात भारतीयों और अन्य हर

  1. यंग इंडियामें यह वाक्य इस प्रकार दिया गया था : "अब पिछले अधिनियमके अमली रूपके अनुभवसे रौलट अधिनियमके विरुद्ध मेरी आपत्तियाँ और भी पुष्ट हो गई हैं।"