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उपद्रव जाँच समितिके सामने गवाही

आदमीके सामने स्वीकारार्थ रखी है। अपने पितासे नाराज होनेके बदले में विनयपूर्वक उनसे कहूँगा कि "मैं इसका पालन करने में असमर्थ हूँ।" इसमें मुझे कोई गलती नहीं दिखाई देती। और अगर अपने पितासे ऐसा कहना गलत नहीं है तो किसी मित्र अथवा सरकारसे ऐसा कहने में तो कोई गलती हो ही नहीं सकती।

रौलट कानूनके विरुद्ध सत्याग्रह चलाने में आपने सारे भारतमें एक हड़ताल करवानेका निश्चय किया था?

जी हाँ।

और हड़ताल के दौरान सरकारकी कार्रवाईके विरुद्ध नाराजगी जाहिर करने के लिए सारा कारोबार बन्द रखनेकी बात थी?

जी हाँ।

तो हड़तालका मतलब है देश-भर में कारोबारका ठप हो जाना?

जी हाँ।

अगर इस तरह सारा कारोबार थोड़े समय के लिए बन्द रहे तब तो शायद कोई हानि न हो। लेकिन अगर यह सिलसिला लम्बी अवधितक चले तो क्या उससे जनताको बहुत हानि नहीं होगी?

बहुत अधिक।

आपकी हड़तालके लिए तो मार्चकी ३० तारीख निश्चित थी?

मैंने सिर्फ इतना ही कहा था कि [वाइसराय की स्वीकृतिके] प्रकाशनके बाद पड़नेवाले दूसरे रविवारको।

दूसरा रविवार तो ६ अप्रैलको पड़ा। लगता है कि कुछ लोगोंको गलतफहमी हो गई थी?

जी नहीं, कोई गलतफहमी नहीं हुई। जिन लोगोंको, वाइसराय की स्वीकृति मिलने के तुरन्त बाद उसकी सूचना मिल गई, उनके लिए वह दिन ३० मार्चको पड़ता था। यह बात मद्रासके लोगोंके ध्यानमें लाई गई थी। मैंने तुरन्त ६ अप्रैलकी तारीख निश्चित करते हुए एक तार भेजा, लेकिन जिस दिन दिल्लीमें वाइसरायकी स्वीकृति देनेके बाद पड़नेवाले दूसरे रविवारकी तिथि निश्चित करते हुए यह पत्र[१] प्रकाशित हुआ उस दिन शाम तक सारे भारतको तार भेजे जा चुके थे। दुर्भाग्यवश हड़ताल समयके पूर्व ही कर दी गई।

और जब दिल्ली में हड़ताल हुई तो दुर्भाग्यवश वहाँ बहुत जबरदस्त बंगे भी हुए'

जी हाँ।

अब जहाँतक हड़तालकी बात है, आपका यही मत है न कि कारोबारसे अलग रहने का ढंग बिलकुल अनाक्रामक हो?

बिलकुल।

  1. गांधीजीने २३ मार्च, १९१९ के इस पत्रका पाठ अखवारों में प्रकाशित कराया था और यह गांधीजी के लिखित वक्तव्यके उपबन्ध 'क' के रूपमें उद्धृत किया गया था। देखिए "वक्तव्य: उपद्रव जाँच समितिके सामने", ५-१-१९२०।