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सत्याग्रहियोंको डिगानेकी कोशिश

उत्तरमें क्या लिखा, परन्तु यह स्पष्ट है कि जबतक हमारे द्वारा उद्धृत पत्रकी शब्दावली में निहित भावना बनी हुई है तबतक ब्रह्मदेशको प्राप्त होनेवाले सुधार ग्रहण करने योग्य नहीं हो सकते।

उस भावनाकी प्रतिध्वनि बम्बईके समीप भी सुनाई दे रही है। अब हमें पहलेकी अपेक्षा अधिक अच्छी तरह मालूम हो गया है कि उच्च न्यायालय द्वारा अहमदाबादके कुछ सत्याग्रही वकीलोंके नाम नोटिस जारी किये जानेका कारण क्या था। उस नोटिसके जारी किये जानेका कारण जिला न्यायाधीश, अहमदाबाद द्वारा बम्बई उच्च न्यायालयके पंजीयकके नाम लिखा एक पत्र था। उस पत्रका[१] सम्पूर्ण पाठ हम अन्यत्र दे रहे हैं। अब देखना है कि आगामी २५ तारीखको जब उच्च न्यायालय में मामले पर बहस शुरू होगी तब उच्च न्यायालय क्या करता है। परन्तु अहमदाबादके जिला- जजने मामलेपर जिस तरह पहलेसे ही फतवा दे दिया है वह अजीब-सा लगता है। वे 'लीग' की गतिविधियों को - हमारा खयाल है 'लीग' से उनका मतलब सत्याग्रह सभासे[२] है - गैरकानूनी मानते हैं और धृष्टतासे भरी हुई यह बात कहते हुए नहीं हिचकिचाते कि

सत्याग्रहका स्थगित किया जाना निस्सन्देह, महज एक ऐसी चाल है जिसका मंशा यह है कि सत्याग्रहियोंके प्रभाव तथा उपदेशोंके परिणामस्वरूप चाहे वह परिणाम प्रत्यक्ष रहा हो अथवा अप्रत्यक्ष - किये गये कृत्योंके सम्बन्धमें दिया जानेवाला दण्ड उनको न भोगना पड़े।

हम 'धृष्ट ' विशेषणका प्रयोग जान-बूझकर कर रहे हैं, क्योंकि इस बहुमूल्य पत्रके दूसरे ही अनुच्छेद में लिखनेवालेकी यह राय स्पष्ट हो जाती है कि

उपरोक्त सज्जन सच्चे दिलसे और अन्तरात्मासे यह मान बैठे हैं कि रौलट कानून एक अपराध है। चूँकि उनके दिलमें यह धारणा जम चुकी है इसलिए

  1. यह पत्र यहाँ उद्धृत नहीं किया जा रहा है। देखिए टू मैमोरेबल ट्रायल्स ऑफ महात्मा गांधी, पृष्ठ २३-२६; सम्पादक : आर० के० प्रभु, नवजीवन प्रकाशन, अहमदाबाद, १९६२ । अहमदाबाद के जिला जजने अपने २२ अप्रैल, १९१९ के पत्र में उन दोनों बैरिस्टरों तथा अहमदा- बादके तीन वकीलों द्वारा सत्याग्रहको शपथ लेनेके भौचित्यका प्रश्न उठाया था। इसके अनुसार उन वकीलोंने इन (रौलट) कानूनोंकी तथा उन अन्य कानूनोंकी, जिनको इसके बाद नियुक्त होनेवाली समिति ठीक समझे - सविनय अवज्ञा करनेका भार अपने ऊपर लिया था । न्यायाधीशका खमाल यह था कि सनदकी रू से उन वकीलोंका इस प्रकार व्यवहार करना उनके व्यावसायिक स्तर तथा कर्तव्योंसे असंगत है। जजके इस प्रकार लिख भेजनेपर, बम्बई उच्च न्यायालयने अपने अनुशासन सम्बन्धी अधिकार क्षेत्र के अन्तर्गत १८ जुलाईको उन वकीलोंके खिलाफ नोटिस जारी किये। जिला-नजके उस पत्रको एक प्रतिलिपि गांगीजीके हाथ लग गई। गांधीजीने उस पत्रको अपनी उक्त टिप्पणीके साथ यंग इंडिया में प्रकाशित कर दिया । उच्च न्यायालयाने १५ अक्तूबर को वकीलोंके खिलाफ अपना निर्णय दे दिया। फैसलेपर गांधीजीको टिप्पणियोंके लिए देखिए यंग इंडिया, २२-१०-१९१९ में “द सत्याग्रही लॉयर्स ” शीर्षक
  2. मार्च ३, १९१९ को रौलट अधिनियमका विरोध करनेके लिए स्थापित सभा । गांधीजी इसके अध्यक्ष थे