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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
यदि वे उसका विरोध करनेमें कानूनका उल्लंघनतक कर डालें तो मैं उन्हें दोष नहीं देता।

इन वकीलोंपर यदि कोई ऐसा व्यक्ति जो उनको न जानता होता, ऐसे अशोभनीय इरादेका आरोप लगाता तो हम उसे असम्मानपूर्ण कहते लेकिन जब एक ऐसे विद्वान् जिला जज जो इन वकीलोंके बारेमें बड़ी ऊँची राय रखनेकी बात करते हैं, उनपर यह आरोप लगाते हैं तो यह आरोप अक्षम्य हो जाता है । पत्रके अन्तिम अनुच्छेद से इस मामलेमें जिला जजकी भावनाओंका साफ-साफ पता चल जाता है। उनका कथन है कि इन दो बैरिस्टरोंके मुकदमे निपटानेकी सामर्थ्यं मुझमें नहीं है, और वे आगे चलकर कहते हैं कि "बहुत सम्भव है कि अहमदाबादकी अभी हालकी घटनाओंके फलस्वरूप उनके खिलाफ [ हमारा ] कोई कदम उठाना अनावश्यक भी हो जाये", हमारा खयाल है कि उनका अर्थ यह है कि विशेष न्यायाधिकरण अभियोग लगायेगा और उन्हें दण्डित करेगा। यह सच है कि उनपर अभीतक [ विशेष ] न्यायाधिकरण द्वारा अभियोग नहीं लगाया गया है, परन्तु इसमें जिला-जजकी कोई गलती नहीं- उन्होंने तो यह निश्चित रूपसे कह दिया था कि इन लोगोंने देशके कानूनके उल्लंघनका अपराध किया है।

इस प्रकार हम देखते हैं कि सत्याग्रहियोंको कुचलनेके लिए कहीं कम तो कहीं ज्यादा सरगर्मी के साथ कोशिशें की जा रही हैं । मगर इस प्रकारकी कोशिश फिजूल है । सत्याग्रहकी भावना तो दमनसे और फलती-फूलती है । कोई इक्का-दुक्का तथाकथित सत्याग्रही तो कष्टोंसे घबराकर घुटने टेक भी सकता है और सिद्धान्तसे मुँह मोड़ सकता है; परन्तु सत्याग्रह यदि एक बार लौ पकड़ ले तो उसे बुझाया नहीं जा सकता। इस मामलेमें शोचनीय यही है कि सत्याग्रह तथा सत्याग्रहियों के ये विरोधी जान-बूझकर या अनजाने ही बोल्शेविज्म के प्रचारके साधन बनते जा रहे हैं। यहाँ भारतमें बोल्शेविज्मका यही अर्थ समझा जाता है कि वह एक हिसापूर्ण अराजक भावना है। दूसरोंपर अपना सिद्धान्त जबरदस्ती थोपनेके मौजूदा तरीकेके अतिरिक्त बोल्शेविज्म और कुछ नहीं है । ब्रह्माकी सरकार, पंजाबकी सरकार, अहमदाबाद के जिला जज ये सब अपने-अपने तरीकोंसे दूसरोंपर, यहाँ सत्याग्रहियोंपर - जबरदस्ती अपनी बात थोपनेका प्रयत्न कर रहे हैं। परन्तु वे भूल जाते हैं किं सत्याग्रहका मूलतत्त्व यही है कि विरोध या अवज्ञा करनेके दण्डको धैर्यपूर्वक सहन करके अत्याचारीकी मरजीका विरोध किया जाये । इसलिए बोल्शेविज्मके शमन के लिए सत्याग्रह ही प्रभावकारी ओषधि है और जो लोग सत्याग्रहकी भावनाको कुचलनेकी सबसे ज्यादा कोशिश कर रहे हैं वे बोल्शेविज्मकी आगको प्रज्ज्वलित करनेके अतिरिक्त और कुछ नहीं कर रहे हैं।[१]

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, ६-८-१९१९

  1. बाद में इस लेखके कारण गांधीजीपर “अदालतको मानहानि का मुकदमा चलाया गया था। देखिए "पत्र : बम्बई उच्च न्यायालय के पंजीयकको", अक्तूबर २२, १९१९।