पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 16.pdf/४३१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३९७
उपद्रव जाँच समितिके सामने गवाही


और जो अभागे दुकानदार अपनी दुकानें बन्द करनेको तैयार नहीं थे उनके साथ जबरदस्ती करना सत्याग्रहके दृष्टिकोणसे और भी अधिक अनुचित था?

जी हाँ, मैं तो इसे अपराधपूर्ण कार्रवाई मानता हूँ।

६ तारीख की हड़तालके सिलसिले में कोई हिंसात्मक कार्रवाई नहीं हुई, लेकिन हमें इस बातके पर्याप्त प्रमाण मिलते हैं कि जब भी हड़ताल हुई है लोगोंसे हड़ताल करनेके लिए आग्रह किया गया है?

हाँ, ऐसा तो किया गया।

यह कार्य तो अनुचित था?

निश्चय ही।

दिल्लीमें आपके नायब स्वामी श्रद्धानन्द हैं. . .?

उन्हें अपना नायब कहने का साहस तो मैं नहीं कर सकता। उन्हें मैं अपना समादृत सहयोगी ही कह सकता हूँ।

उन्होंने आपको हड़तालके विषय में एक पत्र लिखा था। और उसमें उन्होंने आपको यह संकेत दिया था कि दिल्लीमें—और मैं समझता हूँ पंजाब में भी जो-कुछ हुआ है, उसके बाद यह स्पष्ट है कि अगर आप आम हड़ताल करवाना चाहते हैं तो हिंसाकी सम्भावनाको किसी तरह टाला नहीं जा सकता। यह सच है न?

मैं नहीं समझता, उन्होंने ये बातें इतने स्पष्ट शब्दोंमें कही हैं। मुझे उस पत्रका मजमून भी याद नहीं।[१]

उसमें बातें तो बहुत हदतक इसी आशयकी कही गई थीं न?

मेरा खयाल है, वे और आगे बढ़ गये थे; उन्होंने कहा था कि हिंसाके खतरेके बिना यह सम्भव नहीं। हाँ, यहाँ उनका आशय हड़तालसे नहीं बल्कि कानूनभंग करनेके आन्दोलन से था। उन्होंने यह कहा था कि जन-साधारणके बीच सत्याग्रह आन्दोन बेहिचक नहीं चलाया जा सकता, लेकिन दरअसल उनके और मेरे विचारोंमें एक अन्तर है। जब मैंने सविनय अवज्ञा स्थगित की तो उनका यह विचार था कि मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए, लेकिन जब लोगोंको हिंसासे रोकने के लिए उनपर पर्याप्त नियन्त्रण नहीं कर पानेके कारण मुझे सविनय अवज्ञा स्थगित करना आवश्यक जान पड़ा तो उन्होंने कहा : अगर आप यह स्थिति अपनाते हैं तो उससे में यही सीख लूँगा कि सत्याग्रह कभी भी सार्वजनिक आन्दोलनके रूपमें नहीं किया जा सकता।" मेरा खयाल है, यही उनके पत्रका आशय है। इसपर मुझे उनके साथ बातचीत भी करनी पड़ी थी।

  1. यह पत्र गांधीजी ढूँढ़ नहीं पाये। स्वामी श्रद्धानन्द ५ नवम्बरको दिल्लीमें समितिके सामने गवाही देते हुए इसका एक मसविदा ही दिखा सके। उन्होंने गांधीजीको लिखे अपने पत्रका संक्षिप्त आशय इन शब्दोंमें बताया था : "मुझे लगा कि श्री गांधी द्वारा प्रारम्भ किया गया सत्याग्रह—पानी कानूनको सविनय अवज्ञा—उपयुक्त चोज नहीं है। सत्याग्रहके एक अंगके रूपमें श्री गांधी द्वारा छेड़ा गया सविनय अवज्ञा सम्बन्धी आन्दोलन इस देशकी परिस्थितियोंके अनुकूल नहीं है।"