पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 16.pdf/४३२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३९८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


क्या वे आपसे सहमत हुए?

मैं नहीं जानता कि अब भी उनका विचार वैसा ही है या नहीं। सम्भव है, तथ्योंको देखते हुए उनका विचार बदल गया हो। मुझे तो लगता है कि प्रसंग आनेपर सविनय अवज्ञाको स्थगित कर देना उतना ही आवश्यक है जितना कि उसे चलाना।

लेकिन जरा एक बातकी ओर ध्यान दीजिए; अगर आप एक ही साथ पूरी हड़ताल भी करवा देते हैं और निठल्ले लोगों के समूहके बीच कानूनकी सविनय अवज्ञाके सिद्धान्तको भी लागू कर देते हैं, तो उस हालतमें क्या अनाक्रामक और आक्रमक प्रतिरोधमें भेद करना बहुत मुश्किल नहीं हो जायेगा?

यहाँ मैं आपसे, हड़ताल और सच्चे सत्याग्रहके बीच जो बहुत गहरा भेद है उसकी ओर ध्यान देनेका निवेदन करूँगा। हड़तालका स्वरूप कभी सत्याग्रह-सम्मत हो भी सकता है और कभी नहीं भी हो सकता। इस मामलेमें तो सविनय अवज्ञाका हड़तालसे कतई कोई सम्बन्ध नहीं था। हड़तालके दो उद्देश्य थे : एक तो जनता और सरकार, दोनोंका ध्यान आकर्षित करना, लेकिन दूसरा था जो लोग सविनय अवज्ञा करनेवाले हैं, उन्हें अनुशासनकी शिक्षा देना। भारतके मनको समझने के लिए कोई ऐसा प्रभावशाली तरीका अपनानेके अलावा मेरे सामने और कोई उपाय नहीं था। अगर मैंने सिर्फ उपवासकी ही बात कही होती तो मुझे यह नहीं मालूम हो पाता कि कितने लोगोंने उपवास किया और केवल प्रार्थना करनेको कहा होता तो यह नहीं मालूम हो पाता कि कितने लोगोंने प्रार्थना की। इस बातका अन्दाज कर पानेका समुचित साधन हड़ताल ही थी कि मैं अपने सिद्धान्तको कहाँ तक कार्यान्वित कर सकता हूँ।

दोनोंका भेद में अच्छी तरह समझ रहा हूँ। लेकिन अगर हड़ताल उसी समय की गई हो जब लोगोंको सत्याग्रहके सिद्धान्तकी शिक्षा दी जा रही हो तब? और इसकी शिक्षा तो लोगों को सार्वजनिक सभाओंमें दी जा रही थी?

जी हाँ, और ठीक उसी दिन।

लेकिन ऐसा करके क्या आपने शान्ति सुव्यवस्थाके लिए बहुत खतरनाक स्थिति पैदा नहीं कर दी?

जी नहीं, बल्कि मैंने उसके लिए अनुकूल स्थिति पैदा की। और ६ अप्रैलको मैंने स्वयं वैसा किया, क्योंकि उस दिन में बम्बईमें ही था और कुछ ऐसी आशंका थी कि लोग स्वयं ही हिंसापर उतर आयेंगे। और मैं आपसे कह सकता हूँ कि लोगोंने ऐसी कोई कार्रवाई नहीं की जिसे हिंसात्मक, सचमुच हिंसात्मक कहा जा सके, और इसका कारण यह था कि उन्हें सत्याग्रहके सच्चे स्वरूपसे अवगत कराया जा रहा था। हजारों लोग एकत्र थे, लेकिन मैंने आश्चर्यचकित होकर देखा कि उनका व्यवहार बिलकुल शान्तिपूर्ण है। बात ऐसी नहीं हुई होती, अगर लोगोंको सही मौकेपर सत्याग्रहके सिद्धान्तका स्वरूप नहीं समझाया जाता। सब-कुछ इस बातपर निर्भर करता है कि लोगोंको सचमुच सत्याग्रहकी सीख दी जा रही है या सत्याग्रहके रूपमें घृणा की। लेकिन सत्याग्रहको कार्य रूप देना एक बात है और जो लोग हड़ताल कर रहे हैं