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उपद्रव जाँच समितिके सामने गवाही


लेकिन आप यह तो मानेंगे कि आपके और सरकार के बीच मतभेद की गुंजाइश है?—ऐसे मतभेदकी जिसके पीछे कोई दुरभिसन्धि नहीं है?

जी हाँ, वह तो मैंने स्वीकार किया है।

तब सही या गलत, अगर उसने सोचा कि आपको अपने सिद्धान्तका प्रचार करनेके लिए दिल्ली जाने देनेसे दंगे आदिका खतरा है तो उसने जो कुछ किया, वह उचित हो तो था?

हाँ, सरकारके दृष्टिकोणसे उचित ही था; और उस दृष्टिसे तो मेरी कोई शिकायत है ही नहीं।

आपकी गिरफ्तारीके बाद दिल्ली और पंजाब तथा यहाँ अहमदाबादमें बहुत दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएँ घटीं? लेकिन यहाँ हमारा सम्बन्ध सिर्फ अहमदाबादकी घटनाओंसे है। जैसा कि हमें बताया गया है, अहमदाबादमें मिल मजदूरोंके बीच आपकी बड़ी ख्याति है, चूँकि एक बार आपने उनके एक विवादमें सफलतापूर्वक हस्तक्षेप किया था[१] लगता है, आपकी गिरफ्तारीसे वे बहुत क्षुब्ध हो उठे, और बड़े दुर्भाग्यकी बात है कि फिर ११ और १२ तारीखको उनकी यही भावना अहमदाबाद और वीरमगाँवकी भीड़में भी भड़क उठी। इन घटनाओंका सम्भवतः आपको व्यक्तिशः तो कोई ज्ञान है नहीं?

जी नहीं, व्यक्तिशः तो मुझे कोई ज्ञान नहीं है।

लेकिन क्या उसके सम्बन्धमें ऐसी कोई बात है जिसके बारेमें आप अपने विचार देना चाहें? अगर ऐसा कर सकें तो हमें अपना मत स्थिर करनेमें बड़ी सहायता मिले?

इन दंगोंके सम्बन्धमें मैं एक बात जरूर कहना चाहूँगा। मेरे विचारसे अहमदाबाद और वीरमगाँव, दोनों स्थानों में भीड़की कार्रवाई बिलकुल अनुचित थी, और समझता हूँ, उनका आत्मसंयम खो बैठना बहुत अफसोसकी बात थी।[२] मैं भीड़की कार्रवाईका कोई बचाव नहीं करना चाहता, लेकिन साथ ही में यह कहना चाहूँगा कि जो लोग मुझे, सही या गलत, चाहते थे उनके लिए सरकारने, जिसे जरा अधिक समझदारी दिखानी चाहिए थी, एक असह्य तनावकी स्थिति पैदा कर दी थी। मेरा खयाल है, सरकारने वस्तुस्थितिको समझने में अक्षम्य भूल की, और वैसी ही भूल भोड़ने भी की। हाँ, भीड़की भूल सरकारकी भूलके मुकाबले अधिक अक्षम्य अवश्य थी। सत्याग्रहीकी हैसियतसे मैं यह भी कहना चाहूँगा कि भीड़ने ऐसा कोई काम नहीं किया जिसके पक्षमें मैं कुछ कह सकूँ या जिसे उचित मान सकूँ। चाहे कितना भी उत्तेजित क्यों न किया गया हो, लेकिन लोगोंने जो कुछ किया उसे किसी तरह उचित नहीं ठहराया जा सकता। मुझसे कहा गया है कि जिन लोगोंने यह सब किया उनमें से कोई भी सत्याग्रही नहीं था। और यह बात सच भी है। लेकिन उन्होंने सत्याग्रह आन्दोलन में शामिल होनेका निश्चय

  1. तात्पर्थ फरवरी-मार्च, १९१८ के अहमदाबादके मिल मजदूरों के वेतन वृद्धि से सम्बन्धित विवादसे है; देखिए खण्ड १४।
  2. अप्रैल १०, ११ और १२ को भीइने अपने क्षोभका प्रदर्शन करते हुए बहुत-सी हिंसात्मक कार्रवाइयाँ कीं—उसने सरकारी दफ्तरों और रेलवे स्टेशनोंको जलाया, परिवहन व्यवस्था में व्यवधान उपस्थित किये और यूरोपीयों तथा सरकारी अधिकारियोंको चोटें पहुँचाई और कुछको मार भी डाला।
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