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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

किया और इस प्रकार सत्याग्रहके अनुशासनके अधीन आ गये। मैंने लोगोंसे भी ऐसे ही शब्दों में बात की है और इस समितिके सामने अपना यह निश्चित मत रखते हुए मैं दुःखी होकर भी प्रसन्न हूँ। मैंने अन्यत्र भी ऐसा कहा है। और मुझे जो कुछ मालूम हुआ है, उसके आधारपर और भी कहना चाहूँगा।

हाँ, हाँ, जरूर कहिए।

यहाँ आते ही मुझे उस समय जिन शरारतों और गलतियोंका आभास मिला, मैंने उन्हें दुरुस्त करनेकी भरसक कोशिश की। मैंने यह बात लोगों और अधिकारियोंके सामने भी रखी, और श्री प्रैट तथा अन्य अधिकारियोंसे मेरी लम्बी बातचीत हुई। मैं उन लोगोंकी अनुमतिसे एक सभा करनेवाला था; मेरा खयाल है १३ तारीखको उस अवसरपर श्री रॉबर्टसन भी मौजूद थे; लेकिन मैंने सोचा कि उस दिन मेरे लिए सभा करना सम्भव नहीं होगा। उस समय वहाँ सैनिक कानून लागू रहा हो या जो भी हो लेकिन यह कोई मुख्य बात नहीं थी; कठिनाई तो यह थी कि मेरे सहयोगी लोगोंतक पहुँच नहीं पाये थे; उन्होंने सूचनाएँ बँटवानेके लिए स्वयंसेवक भेजे। मैंने श्री प्रैटसे सलाह की और उन्होंने कह दिया कि "हाँ, आप १४ को सभा कर सकते हैं।" इस प्रकार सभा १४ तारीखको हुई। मुझे जो कुछ महसूस हुआ था, मैंने सभामें कहा। उसमें ऐसा भी हुआ कि मैंने "युक्तिपूर्वक" और "पढ़े-लिखे" शब्दोंका प्रयोग किया, जिन्हें मेरे और आम लोगोंके विरुद्ध भी इतना अधिक उद्धृत किया गया है।[१] मेरे विरुद्ध इनका प्रयोग किया जाये तो कोई हर्ज नहीं, लेकिन अगर आम लोगोंके विरुद्ध किया जाये तब तो यह बात विचारणीय हो जाती है। भाषण गुजराती में दिया गया था। अगर आप उसे पढ़ें तो—लेकिन आप तो नहीं ही पढ़ पायेंगे—हाँ, सर चिमनलाल अवश्य पढ़ लेंगे। इस सम्बन्धमें वे समितिका मार्गदर्शन करेंगे और अगर मैं इन शब्दोंका अर्थ गलत लगाऊँगा या उन्हें गलत रूपमें पेश करूँगा तो वे सुधार देंगे। मैंने एक गुजराती शब्द 'शीखेला' का अनुवाद किया है, जिसका मतलब है वह व्यक्ति जो पढ़ना और लिखना जानता हो, और उस समय मुझे जैसा सूझा उसके अनुसार "भणेला" शब्दका प्रयोग किया। इस सम्बन्धमें मुझे जो प्रमाण मिले होंगे उन सबको इकट्ठा करनेका मेरे पास समय नहीं था। मैंने "भणेला" शब्दका प्रयोग "मुखिया"—वह "व्यक्ति जो पढ़ और लिख सकता हो" के अर्थ में किया था। मैंने "संग-ठन"—जैसी किसी चीजकी चर्चा नहीं की; हाँ, यह कहा होगा कि "संगठित ढंगसे किया गया।" मैं उसमें से एक शब्द भी वापस नहीं लेना चाहता। लेकिन अगर में समझा सकूं तो इस समितिको यह हूँ कि में सिर्फ अहमदाबातकी कोई समझाना चाहता बादकी घटनाओंका ही जिक्र कर रहा था। तबतक मुझे इस ही नहीं थी कि वीरमगाँवमें क्या हुआ है। जानकारी लेकिन जहाँतक अहमदाबादकी बात है।

  1. तात्पर्य भाषण में कहे इन वाक्योंसे है : मुझे लगता है कि जो काम अहमदाबादमें हुए वे युक्तिपूर्वक हुए हैं। ऐसा मालूम होता है कि उनके पीछे कोई योजना रही है। इसलिए मैं निश्चित रूपसे यह मानता हूँ कि उनमें किसी पढ़े-लिखे आदमी या आदमियोंका हाथ होना चाहिए।" देखिए झण्ड १५, पृष्ठ २२८-३१।