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उपद्रव जांच समिति के सामने गवाही

पूरी तसवीरको देखते हुए और लोगोंसे बातचीत करनेके बाद—मैंने बहुत सारे लोगों से बातचीत की और सभाके दौरान ही नहीं बल्कि उससे पहले भी—मुझे लगा कि यह काम संगठित रूपसे किया गया है और अब भी मेरी यही धारणा है। मैंने निःसंकोच यही बात श्री गाइडरसे[१] और यही बिना किसी संकोचके श्री चैटफील्डसे[२] भी कही थी और अब भी में उस बातको दुहराने को तैयार हूँ। मेरे विचारसे यह काम संगठित ढंगसे किया गया था—लेकिन इतना ही, इससे आगे कुछ नहीं। यह जो सारे देशमें गहरे षडयंत्र या संगठनकी बात की जाती है, जिसका यह एक हिस्सा था, सो उसका तो कोई सवाल ही नहीं था। यह संगठन मौकेपर तुरत-फुरत तैयार किया गया था; यह संगठन वैसा नहीं था जिसे सचमुच संगठन कहा जा सके। मेरा कथन यही था कि "यह काम संगठित ढंगसे किया गया है।" मुझे और जो तथ्य प्राप्त होते गये उन्हें देखनेपर मेरी धारणा और भी पक्की होती गई। मैं अपनी स्थिति समिति के सामने भी रखना चाहता हूँ। जब में उतने अधिक लोगोंके सामने बोल रहा था, उस समय मुझे यह चिन्ता नहीं थी कि सरकार इसपर क्या कार्रवाई करेगी बल्कि मेरे लिए लोगोंके सामने वस्तु-स्थितिका निदान करना जरूरी था। उस समय मेरे सामने पुलिसको कोई जानकारी देनेकी बात नहीं थी और जब श्री गाइडर मेरे पास आये तो मैंने कहा, 'यह कोई मेरा काम नहीं है।' में तो मात्र एक सुधारक हूँ और अगर में लोगोंको उनके गलत आचार-व्यवहारसे विमुख कर सका तो मेरी कार्रवाई उचित है और वहीं मेरा कर्त्तव्य भी समाप्त हो जाता है; अगर आप मुझसे कोई नाम बतानेकी आशा रखते हैं तो यह आपकी भूल ही है।" मैंने कहा कि मैं एक नागरिककी हैसियतसे अपने सिर बहुत गम्भीर जिम्मेदारी ले रहा हूँ और में उस जिम्मेदारीको भलीभाँति समझता भी हूँ। तो आप मेरे शब्दोंका समुचित मूल्यांकन करें। उस शब्दको किसी संगठनके साथ जोड़ना—चाहे वह संगठन वास्तविक हो या काल्पनिक—उसका सही मूल्यांकन नहीं है। अगर मैं उस शब्दको केवल अहमदाबादतक—अहमदाबाद के उस अनपढ़ जनसमुदाय—तक—सीमित रखूँ, जो कोई सूक्ष्म अन्तर करनेमें असमर्थ होगा तो आपको इस बातका आभास मिल जायेगा कि वह संगठन क्या है। मैंने ठीक यही विचार उनके सामने व्यक्त किया था और यह विचार समितिके सामने व्यक्त करते हुए भी मुझे कोई संकोच नहीं। फिर बहकावे में आये हुए वे बेचारे मजदूर थे जिनकी एकमात्र आकांक्षा मुझे और अनसूयाबाईको स्वतंत्र देखनेकी थी। इसमें तो मुझे तनिक भी सन्देह नहीं कि किसी व्यक्तिने जानबूझकर यह शरारत भरी अफवाह उड़ाई थी। इन बातोंके घटित होते ही लोगोंने सोचा कि इसके पीछे कुछ-न-कुछ जरूर होगा। फिर थे अर्ध-शिक्षित, अधकचरे नौजवान। और दुःखके साथ कहना पड़ता है कि यह उन्हींका काम था। इन नौजवानोंके दिमागमें सिनेमा आदि देखकर तथा बेकारके उपन्यासों और यूरोपके

  1. जे॰ ए॰ गाइडर, बम्बईको सी॰ आई॰ डी॰ पुलिसके डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल। अहमदाबादके दंगे की जाँचका कार्य उन्हींको सौंपा गया था।
  2. जी॰ ई॰ चैटफील्ड, अहमदाबादके जिला मजिस्ट्रेट।