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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

राजनीतिक साहित्य को पढ़कर झूठे विचार मनमें जम गये हैं। इस विचारधाराके लोगोंको मैं जानता हूँ। इन लोगोंसे मिलकर मैंने इन्हें ऐसे विचारोंसे विमुख करनेका भी प्रयत्न किया है। और मैं समितिके सामने कह सकता हूँ कि इसके फलस्वरूप आज अगर सौ नहीं तो बीस लोग तो ऐसे हैं ही जिन्होंने हिंसात्मक विचारधाराका परित्याग कर दिया है। लेकिन यह संगठन इसी ढंगका था। मेरा खयाल है, मैंने जो कुछ कहा उसका पूरा मतलब अब बता चुका हूँ। में उन लोगोंको जान-बूझकर इससे अलग रख रहा हूँ, जो डिग्री या विश्वविद्यालय स्तरके विद्यार्थी हैं। मैं समितिसे यह तो कह ही नहीं सकता कि ये लोग ऐसा नहीं कर सकते। सच तो यह है कि विश्वविद्यालयके छात्रोंने भी ऐसी बातों में अक्सर भाग लिया है, लेकिन अहमदाबादमें नहीं, कमसे-कम इस काममें नहीं। मुझे ऐसे एक भी विश्वविद्यालय स्तरके छात्रके बारेमें मालूम नहीं, जिसका इस आगको भड़काने में हाथ रहा हो।

संगठन करनेके सम्बन्धमें आपका खयाल यही है न कि उसकी शुरूआत १० तारीखको हुई थी?

श्री चैटफील्डने ऐसा ही कहा है?[१] दरअसल मैंने इस सम्बन्धमें विशेष सोचा नहीं है, लेकिन यह संगठन या प्रयत्न जो भी कहें—दंगेके पूर्व ही किया गया था।

इस सम्बन्धमें में आपसे किसी व्यक्तिका नाम बतानेको नहीं कह रहा हूँ। लेकिन आपने जो कुछ कहा उससे स्पष्टतः आपका विचार तो यही था कि जो लोग १० और ११ तारीखकी घटनाओंके प्रवाहमें बह गये, वे एक सर्वसामान्य उद्देश्यसे प्रेरित थे?

में यह तो नहीं कहूँगा कि वे एक सर्वसामान्य उद्देश्य से प्रेरित थे, क्योंकि ऐसा कहना मेरे खयाल से बातको दूसरी ओर बहुत दूरतक खींच ले जाना होगा। ऐसा नहीं कि पूरी भीड़ एक सर्वसामान्य उद्देश्य से प्रेरित थी, लेकिन श्रीमन् मेरे इस विचारसे शायद सहमत होंगे कि कोई सर्वसामान्य उद्देश्य दो-तीन व्यक्तियोंतक भी सीमित रह सकता है, और वे पूरी भीड़को प्रभावित कर सकते हैं, किन्तु एक बार जब वे लोगोंको अपने विचारोंसे प्रभावित कर लेते हैं तब हालांकि मूलतः जिम्मेदारी उन दो या तीन आदमियोंकी होती है, लेकिन प्रभाव तमाम लोगोंपर पड़ता है।

तो इस विशेष अवसरपर यानी १०, ११ और १२ तारीखको, इस प्रवाहने जो रूप लिया वह था सरकारकी पूरी सत्ताका उच्छेदन; है न?

मेरा खयाल है यह सरकार विरोधी तो निश्चय ही था, लेकिन अबतक में यह निश्चय नहीं कर पाया हूँ कि इसका स्वरूप यूरोपीय-विरोधी भी था या नहीं। दरअसल इस सम्बन्धमें में समितिकी सहायता करनेकी स्थितिमें नहीं हूँ। वैसे मैं तो यही मानना चाहूँगा कि उसका स्वरूप यूरोपीय-विरोधी नहीं था। इसमें कोई सन्देह नहीं कि इस अन्धकारमें प्रकाशकी कुछ क्षीण रेखाएँ भी थीं।[२] लेकिन अगर मुझे

  1. ५ जनवरीको जाँचके दौरान चैटफील्डने कहा था : "श्री गांधीने मुझे निजी बातचीत में बताया कि वे जानते हैं कि इसका संगठन १० तारीखकी रातको किया गया था और वे यह भी जानते हैं कि यह संगठन किसने किया था।"
  2. उदाहरणार्थं ऐसे कुछ यूरोपीय धर्म-प्रचारक थे, जिनके साथ भीड़ने कोई बुरा सढक नहीं किया।