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उपद्रव जाँच समितिके सामने गवाही

ऐसा पता चला कि इसका स्वरूप यूरोपीय विरोधी भी था तो सचमुच यह मेरे लिए बड़े दुःख की बात होगी। फिर भी अगर मुझे ऐसा कुछ मालूम हुआ तो मैं उसे समितिके सामने अवश्य रख दूँगा।

मैं नहीं जानता, आप इस प्रश्नका उत्तर देना चाहेंगे या नहीं। फिर भी पूछ लेता हूँ कि सत्याग्रहके सिद्धान्तके अनुसार क्या यह ठीक है कि जिन लोगोंने अपराध किया है उन्हें गैर-सैनिक अधिकारी सजा दें?

मैं नहीं कह सकता कि यह चीज गलत है, लेकिन इसके लिए इससे अच्छा तरीका भी है। इस सवाल का जवाब देना तो सचमुच बड़ा कठिन है, क्योंकि आप बाहरसे किसी दबावकी आशा तो नहीं रखते। लेकिन मेरे विचारसे कुल मिलाकर यह कहना ठीक होगा कि अपराधियोंको दी गई सजाका सम्भवतः कोई सत्याग्रही विरोध नहीं कर सकता और उस हालत में वह सरकार विरोधी भी नहीं हो सकता।

लेकिन स्पष्टतः यह तो सत्याग्रहके सिद्धान्तके विरुद्ध है न कि कोई सरकारको ऐसी जानकारी दे जिससे अपराधियों को सजा दी जा सके, और इस प्रकार वह सरकार की सहायता करे?

सत्याग्रहके [सिद्धान्तके] अनुसार आप कह सकते हैं कि यह बात असंगत है।

अच्छा, यह असंगत है?

जी, असंगत ही होगी।

क्यों?

बस इस कारण कि सत्याग्रहीका काम यह नहीं है कि पुलिसके सामने जो तरीका हो या वह जिस तरीकेको अपनाये, उस विशेष तरीकेसे सत्याग्रही उसकी सहायता करे; लेकिन वह लोगोंको अधिक विधिचारी और सत्ताका आदर करनेवाला बनाकर अधिकारियों और पुलिसकी सहायता अवश्य करता है। लेकिन जब वह खामियाँ देखता है तब वह पुलिसकी कार्रवाइयोंके साथ-साथ अपना सुधार-कार्य भी जारी कर दे, यह कोई उसका काम नहीं है। ये दोनों चीजें परस्पर विरोधी और असंगत हैं। मैं जानता हूँ कि श्री गाइडर इस बात से सहमत नहीं हैं।[१]

आपने श्री गाइडरको तो कुछ जवाब दिया है? उसी जवाबके आधारपर में आपसे यह सवाल पूछ रहा था?

जी हाँ, जवाब तो दिया है लेकिन वे मुझे अपनी मान्यतासे डिगा नहीं सके हैं।[२] और मैं यह अच्छी तरह जानता हूँ कि मैं भी उनसे उनकी मान्यता बदलवा नहीं पाया हूँ।

  1. गाइडरने १७ अप्रैलको गांधीजीसे मुलाकात की थी। ७ जनवरीको गाइडरने जाँच समितिके सामने बयान दिया कि गांधीजीने उन्हें बताया था कि "उन्हें [गांधीजीको] कुछ बातोंको जानकारी थी, लेकिन जिन व्यक्तियोंने वह जानकारी उन्हें दी थी, उनकी अनुमतिके बिना वे सब बातें बता देनेके लिए तैयार नहीं।" देखिए खण्ड १५, पृष्ठ ३१०।
  2. गाइडरने इस बातकी सूचना चैटफील्डको दी और चैटफील्डने मईके अन्त में गांधीजीसे मुलाकात की, लेकिन वे उनसे कोई जानकारी प्राप्त नहीं कर पाये। कमिश्नर प्रैटने भी गांधीजीसे उक्त जानकारी प्राप्त करनेके कई विफल प्रयत्न किये।