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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

होगा। जिन सैनिकोंको मौकेपर तैनात किया गया था उन्हें मैंने देखा था। उनमें से कुछ तो बिलकुल कच्ची उम्रके छोकरे थे। श्री प्रेंटने जो कुछ कहा था, उससे इस खतरेकी मुझे और भी स्पष्ट प्रतीति हो गई थी। उन्होंने कहा था कि ये आदेश जारी करना एक बात है और जिस भावनासे ये जारी किये गये थे, उसी भावनासे इनपर अमल करना दूसरी बात है। उन्होंने यह भी कहा था कि इस खतरेका अनुमान तो उन्होंने पहले ही लगा लिया था कि ये नौजवान सिर्फ लोगोंकी जानके साथ खिलवाड़ करेंगे और आग से खेलेंगे; और मुझे भी लगता है कि ऐसा कुछ घटित अवश्य हुआ है।

तो आपका खयाल है कि सम्भवतः ऐसा कुछ घटित हुआ होगा?

मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि ऐसा घटित "हुआ होगा", मेरा खयाल है इस तरहकी कुछ बातें घटित हुई हैं। मैं समझता हूँ जो लोग मेरे पास आये उन्होंने बातको बढ़ा-चढ़ाकर नहीं कहा। मैंने उनसे बड़ी सख्ती के साथ जिरह की और उन्होंने कहा कि "नहीं, हमें कोई चेतावनी नहीं दी गई।" अगर ९ आदमियोंका कोई समूह है। तब तो कोई बात नहीं, यह कोई अपराध नहीं है; लेकिन ऐसे ही एक दसवाँ आदमी आता है जिसका कोई इरादा दसवाँ व्यक्ति बननेका नहीं है, और सैनिक गोलियाँ चलाना शुरू कर देते हैं। और फिर जिन लोगोंको कुछ मालूम नहीं है उनको चेतावनी देनेका भी क्या महत्त्व है?

लेकिन निःसन्देह उस आदेशका उद्देश्य तो लोगोंको सामूहिक रूपमें एकत्र होने और हिंसात्मक कार्रवाई करनेसे रोकना ही था?

मेरा खयाल है कि वैसा करनेका कहीं बेहतर तरीका भी था।

कौन-सा बेहतर तरीका?

बेहतर तरीका यह था कि गोलियाँ न चलाई जातीं। गैर-जिम्मेदार नौजवानोंको निर्देश देना हद दर्जेंकी भूल थी।

अगर ऐसी कोई शिकायत की जाये कि किसी गैर-जिम्मेदार नौजवानने, उसे जैसे निर्देश दिये गये थे, उनके विपरीत काम किया तो हम उस घटनाविशेष तथा उससे सम्बन्धित तथ्योंके बारेमें तो जानना चाहेंगे न?

आपका कहना बिलकुल ठीक है। लेकिन मैं तो आपको सिर्फ अपनी धारणा ही बता सकता हूँ। कुछ सिद्ध करनेमें में असमर्थ हूँ और मैं समझता हूँ इसकी जिम्मेदारी मुझपर ही है; लेकिन अगर आप मेरी धारणा जानना चाहें तो कहूँगा कि ऐसी कुछ बातें अवश्य ही घटित हुई होंगी। मैं जो सोचता हूँ वह यह कि किसी गैर-सैनिक अधिकारीको यह महसूस होना चाहिए था कि इन परिस्थितियों में ऐसी बातें अवश्यम्भावी हैं।

इस सम्बन्धमें कुछ और कहना है?

जी हाँ, मैंने अपने बयानमें कहा है और उसे एक बार फिर दुहरा देना चाहता हूँ कि में नहीं जानता कि लोगोंको पर्याप्त सजा नहीं दी गई, हालांकि में फिर कहूँगा और बड़े हर्षके साथ कहूँगा कि यहाँ सैनिकोंने जो कुछ किया वह सभ्य समाजके न्यायके नियमोंके अनुरूप ही था। उसके विरुद्ध कहनेको कुछ नहीं था। में पहले ही कह चुका