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उपद्रव जाँच समितिके सामने गवाही

हूँ कि कानूनके जिन खण्डोंके अधीन मुकदमे चलाये गये उनका प्रयोग नहीं करना चाहिए था। उसकी कोई जरूरत नहीं थी और जब सुनवाई हुई उस समय तो निश्चय ही नहीं थी।

आपका मतलब सरकारके विरुद्ध लड़ाई छेड़ देनेसे सम्बन्धित खण्डोंसे ही है न; लेकिन यह तो आखिरकार एक कानूनी सवाल है?

जी हाँ, सो तो है; लेकिन मैं इसे समिति के सामने इसलिए रख रहा हूँ कि उसे सरकार द्वारा की गई कार्रवाइयोंका, मेरे प्रयत्नोंसे जहाँतक सम्भव हो वहाँतक, सही अन्दाजा हो जाये। और यद्यपि मैंने सरकारकी संयम सहिष्णुताके लिए उसकी उचित सराहना की है, लेकिन इसका मतलब यह न समझ लेना चाहिए कि उसने जो कुछ किया, मैं उस सबका अनुमोदन करता हूँ; और इसीलिए मैं समितिको, प्रशासन द्वारा परिस्थितियोंको इतने प्रशंसनीय ढंगसे सँभालनेके बावजूद उसमें जो त्रुटियाँ हुई उन्हें यथासम्भव विनम्र से विनम्र ढंग से समझाने की कोशिश कर रहा हूँ।

लेकिन यह क्या बहुत-कुछ ऐसा नहीं लगता जैसे आप सरकारी वकीलके खिलाफ यह शिकायत कर रहे हों कि उसने सही आरोपको नहीं समझा?

मेरा तो खयाल है बात इससे भी आगे जाती है। उक्त खण्डको सिर्फ सरकारी वकीलने ही चुना हो, ऐसा नहीं है; हालांकि प्राविधिक तौरपर देखें तो है भी। लेकिन जो कुछ हुआ, इस तरह नहीं हुआ। मुझे इसका व्यक्तिगत और बिलकुल सही अनुभव है। कोई भी वकील कोई खण्ड चुननेकी पूरी जिम्मेदारी अपने सिर नहीं ले सकता; उसका रवैया तो प्रशासनकी तत्कालीन प्रवृत्तिपर निर्भर करेगा और सरकार उसे यानी अपने वकीलको, उक्त खण्ड न चुननेकी हिदायत दे सकती थी; लेकिन मैं अपने-आपसे पूछता हूँ कि क्या अहमदाबादपर इतनी बड़ी रकम अदा करनेका बोझ लाद देना सरकारके लिए जरूरी था।[१] लेकिन मुझे जो बात सबसे ज्यादा चुभती है, वह यह है कि इतना सख्त जुर्माना उसने मिल मजदूरोंके ऊपर किया और इस तरीकेसे किया। और जिस प्रकार वह जुर्माना वसूल किया गया वह मेरे विचारसे अक्षम्य था।

इस सम्बन्धमें श्री अम्बालाल साराभाईने एक वक्तव्य दिया था?[२]

जी हाँ, और उनके और उनकी न्यायप्रियता के प्रति सम्मान भाव रखते हुए भी मैंने उनसे असहमति प्रकटकी थी। मेरा खयाल है कि उन्होंने अपराध—घोर अपराध किया और सो भी अपने ही लोगोंके प्रति—बेचारे मजदूरोंके प्रति।

मुझे तो लगता है कि आप हमारी जाँचके मुद्दोंसे शायद कुछ बाहर जा रहे हैं?

जी हाँ, लेकिन आपने मेरे सामने एक बहुत ही चुभनेवाली बात रखी है।

  1. अहमदाबादके लोगोंपर दण्डस्वरूप ९ लाख रुपयेका जुर्माना ठोक दिया गया था, जिसका उद्देश्य ऊपरी तौरपर दंगे में धन-सम्पत्तिकी जो बर्बादी हुई थी उसकी क्षतिपूर्ति करना था।
  2. साराभाईने अन्य बातोंके साथ-साथ यह भी कहा था कि "जिस प्रकार यह जुर्माना किया गया है, वह यद्यपि न्यायसंगत नहीं है और न किसी तरह उसे उचित ही ठहराया जा सकता है, फिर भी मेरे विचारसे उसमें कोई क्षोभ-जनक बात नहीं है।"