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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


निःसन्देह मालिकों और मजदूरोंके बीच मतभेद हो सकता है, लेकिन हमें तो उससे कुछ लेना-देना नहीं है।

मैंने यह बात पूरी तरह समझ ली थी और श्री अम्बालालकी कठिनाइयोंको मुझसे अधिक कोई नहीं समझ सकता। और मैं अपने बयानके इस हिस्सेको यह कहकर समाप्त करना चाहता हूँ कि मेरे खयाल से नडियाद और बारेजडीवाले मामलेके सम्बन्धमें सरकारकी कार्रवाई बिलकुल अनुचित थी, और में समितिसे गवर्नर और नडियाद के कलक्टर के बीच हुए पत्र-व्यवहारको पढ़नेका अनुरोध करूँगा।[१] उसमें आप देखेंगे कि इस जुर्मानेको लादनेके लिए जो तर्क दिय गये हैं वे वस्तुस्थितिसे बिलकुल असम्बद्ध हैं।

यह सवाल तो दरअसल भारतके कानूनोंका है, लेकिन क्या यह बात उन कानूनोंको देखते हुए संगत नहीं है कि अगर किसी विशेष जिलेके लिए अतिरिक्त पुलिस दस्ता रखना पड़े तो उसका खर्च उस जिलेको चुकाना पड़ेगा?

निश्चय ही सरकार ऐसा करनेको बँधी हुई नहीं है। सरकारको लोगोंसे खर्च वसूल करनेकी पूरी छूट है; उसे इस बातकी भी छूट है कि वह चाहे तो इसके लिए किसी वर्ग-विशेषको चुन ले; लेकिन उस कानूनको पढ़कर मेरी जो धारणा बनी है, उसके अनुसार सरकारको अपने विवेकके प्रयोगका ऐसा विस्तृत अधिकार कहीं नहीं दिया गया है और वह यह खर्च आम जनतासे वसूलनेको बँधी हुई नहीं है।

लेकिन वह इस सबपर खर्च कहाँसे करेगी?

सामान्य राजस्व वसूल करके। अगर उसे लगता है कि किसी विशेष जिलेमें पुलिस व्यवस्था अपर्याप्त है, तब तो वह ऐसा करती ही है। उसका खर्च वह सामान्य राजस्वसे पैसे लेकर ही तो पूरा करती है। और नडियाद तथा बारेजडीके लोगोंके सम्बन्धमें अपनी जानकारीके आधारपर मेरा यह निश्चित विचार है कि वहाँ अतिरिक्त पुलिस रखने की कोई जरूरत नहीं थी। नडियादके लोगोंने कठिनसे कठिन परिस्थितियोंमें भी बहुत ही आत्म-संयमका परिचय दिया, और मैंने कलक्टर श्री केरके साथ मिलकर उस मामलेकी अपने तई अधिकसे-अधिक सम्यक् जाँच की, और मैं समितिसे कहूँगा कि मेरा यह सुचितित मत है कि जो लोग गाड़ीको पटरीसे उतारने गये थे उनसे नडियादके लोगोंका कोई सम्बन्ध नहीं था, बल्कि उन्हें रोकनेके लिए उनसे जो कुछ बन सकता था, उन्होंने किया और कलक्टरने इसके लिए उनकी बड़ी सराहना की थी तथा उनकी सहायताके लिए उनका आभार माना था । और यही बात में बारेजडीके लोगोंके बारेमें भी कहूँगा।

मेरा खयाल है कि आप जो मुद्दे हमारे ध्यानमें लाना चाहते हैं इसका सम्बन्ध उनसे है।

मैं ऐसा ही समझता हूँ, महोदय।

  1. यह उपलब्ध नहीं है।