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उपद्रव जाँच समिति के सामने गवाही

माननीय न्यायमूर्ति श्री रैंकिन द्वारा पूछताछ :

श्री गांधी, आपने हमें अपने सविनय अवज्ञा सम्बन्धी विचार बताये और मैं बिलकुल नहीं चाहता कि आप मुझे फिरसे यह बात समझायें। लेकिन अगर आप बता सकें तो में कुछ तथ्यों और तारीखोंके सम्बन्धमें मोटी-मोटी जानकारी प्राप्त करना चाहता हूँ। मेरा खयाल है कि सत्याग्रहकी प्रतिज्ञा फरवरीके तीसरे हफ्तेके आसपास लेना तय हुआ था?

मैं समझता हूँ, आप लगभग ठीक ही कह रहे हैं।

और मेरा खयाल है कि जिसे आपका हुक्म कहा गया है, वह २३ फरवरीके आसपास जारी किया गया था?

जी हाँ।

तबतक रौलट विधेयक संख्या २ पास नहीं हुआ था और वह बादमें मार्चके महीने में पास हुआ?

शायद।

प्रतिज्ञा[१] जिस छपे रूपमें हमारे सामने है उससे तो प्रकट होता है कि यह बात ज्ञात थी कि विधेयक पास हो जायेगा, हालांकि अभीतक वह पास नहीं हुआ था?

जी हाँ।

और मेरा खयाल है कि २३ फरवरीके कुछ पहलेसे ही, लगता है भारतके अखबारोंके पृष्ठ, इन कानूनोंके पास हो जानेपर इनके खिलाफ किस प्रकारसे विरोध प्रकट किया जाये, इस आशयके सुझावोंसे रंगे रहते थे। वैसे उस समय इस सबकी जानकारी प्राप्त करना कोई मेरा काम नहीं था, लेकिन जो कागजात हमारे सामने रखे गये हैं उनसे ऐसा ही लगता है। और मैं कह सकता हूँ कि विरोध-प्रदर्शनका स्वरूप क्या हो, इसके बारेमें किसी निश्चित निष्कर्षपर पहुँचनेसे पूर्व आपके सामने इस सम्बन्धमें बहुत सारे सुझाव आये थे, जिनपर आपको विचार करना पड़ा था और आपको जिन सुझावोंपर विचार करना पड़ा था उनमें से भारत-भरमें प्रसिद्ध एक सुझाव इस आशयका भी था कि अगर लोग लगान और कर देना बन्द कर दें तो यह विरोधका एक अच्छा तरीका होगा? मेरा खयाल है कि आपको बहुत सारे सुझाव गैर-जिम्मेदार लोगोंकी ओरसे भी प्राप्त हुए थे और आपने फरवरीके तीसरे हफ्तेमें सत्याग्रहकी जो प्रतिज्ञा निर्धारित की वह उस समय यही सोचकर निर्धारित की थी कि यह विरोधका सबसे अच्छा तरीका है?

जी हाँ।

और चूँकि आपने एक भाषण दिया था, जिसे शायद मैंने भी पढ़ा था, इसलिए आपसे यह पूछ रहा हूँ कि क्या आपको ऐसे किसी सुझावपर भी विचार करना

  1. पद सत्याग्रहको प्रतिज्ञा थी, जिसे बम्बई सरकारने समितिके सामने दिये गये अपने बयानमें उद्धृत किया था।