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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पड़ा, यानी किसीने आपके विचारार्थ कोई ऐसा सुझाव भी पेश किया था कि कुछ ऐसा निश्चित कर दिया जाये या नहीं कि दण्ड-विधानके अन्तर्गत, स्थानीय मजिस्ट्रेटों द्वारा दिये गये आदेशोंकी अवज्ञा की जाये?

जी हाँ, निःसन्देह ऐसा सुझाव मेरे सामने रखा गया था।

और आपने इस सुझावको बिलकुल स्वीकार नहीं किया? आपने सोचा कि यह शायद ठीक नहीं होगा?

जी हाँ, और मैंने उसे न केवल अस्वीकार किया बल्कि मैंने उसका जोरदार विरोध भी किया।

क्या इस विषयपर, समझ लीजिए ८ अप्रैलतक, आपने पक्षविपक्षमें कोई विचार प्रकट किया था?

जी हाँ, ८ अप्रैलतक तो मैंने इस सम्बन्धमें अपना विचार विस्तृत रूपसे व्यक्त कर दिया था, क्योंकि मेरे मित्र मुझसे यह आग्रह कर रहे थे कि हमें जलूस आदिसे सम्बन्धित कानूनोंका उल्लंघन करना चाहिए, किन्तु मैंने कहा था कि हम शायद ऐसा नहीं कर सकते और न हमें ऐसा करना ही चाहिए। बल्कि मैंने तो इस आशयके निर्देश भी जारी किये थे कि पुलिसके सभी आदेशोंका निष्ठापूर्वक पालन और निर्वाह करना चाहिए।

क्या आप ऐसे किसी निर्देशकी तारीख बता सकते हैं, जिसे इस सम्बन्धमें आपने या बम्बई सभाने सार्वजनिक रूपसे जारी किया हो?

मैं इतना ही कह सकता हूँ कि यह निर्देश ६ तारीख और वास्तवमें जिस दिन सविनय अवज्ञा शुरू की गई, उसके बीच जारी किया गया था। इस सम्बन्धमें समितिसे में यही निवेदन कर सकता हूँ कि अगर समिति चाहे तो मुझे जो भी कागजात मिलेंगे, में भेज दूँगा।

यों में आपको कोई अनावश्यक कष्ट नहीं देना चाहता, लेकिन अपनी ओरसे इतना कहूँगा कि अगर आप मुझे कोई ऐसा कागज दे सकें जिससे यह प्रकट होता हो कि आपने स्थानीय मजिस्ट्रेटोंकी अवज्ञाके विचारको अस्वीकार कर दिया था तो मुझे बड़ी खुशी होगी।

अगर होगा, तो में वैसा कागज अवश्य भेजूँगा।[१]

मैं आपसे यह जाननेको जरा उत्सुक हूँ कि ठीक-ठीक वह क्या बात थी जिसके कारण आपको दिल्लीकी यात्रा करनी पड़ी, हालांकि आपको वहाँ जानेसे बीचमें ही रोक दिया गया। क्या आप संक्षेपमें अपने ही ढंगसे वे बातें कहेंगे जिनको लेकर आपको वैसा करना पड़ा और यह भी कि दिल्ली पहुँचकर आप सचमुच क्या-कुछ करना चाहते थे?

बात १ अप्रैल या उससे कुछ पहलेकी ही होगी। मुझे अमृतसरसे डॉ॰ सत्य- पालका एक पत्र मिला था। उसमें उन्होंने लिखा था कि मैं सत्याग्रह आन्दोलनको बड़े

  1. गांधीजीने "पत्र : न्यायमूर्ति रैंकिनको", ११-१-१९२० के साथ कुछ कागजात भेजे थे। वे उपलब्ध नहीं है।