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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मैं बेकार ही इन सबका भार ढोते रहना नहीं चाहता। लेकिन सम्भव है ये तार मेरे पास हों। अगर होंगे तो मैं आपको दे दूँगा।[१]

जैसा कि में समझता हूँ, आपको पत्र लिखनेमें स्वामीजीका खयाल यह था कि आपके दिल्ली आनेसे सत्याग्रह आन्दोलनको यह लाभ हो सकता है कि उसके प्रभावका और भी विस्तार हो और इसलिए वे चाहते थे कि आप दिल्ली आयें?

अवश्य।

तो वे आपको दिल्ली आनेका निमन्त्रण उत्तेजित और बेकाबू जन-समुदायको शान्त करनेके स्पष्ट उद्देश्यसे नहीं बल्कि सत्याग्रहके प्रचारके सामान्य क्रममें दे रहे थे?

हाँ, लेकिन उस तरीकेसे नहीं जिस तरीकेसे मेरे अमृतसर जानेकी व्यवस्था की गई थी। उन्होंने यह स्पष्ट लिखा था कि "ऐसा भी हो सकता है कि हम भीड़को नियन्त्रण में न रख सकें।" उन्होंने कहा था कि "अबतक तो मैंने अपने तई अधिक-से-अधिक कोशिश की है। लेकिन हो सकता है, सफल न होऊँ और इसलिए में चाहता हूँ आप आ जायें। आपकी उपस्थितिका असर बड़ा शमनकारी होगा।" अगर मुझे वे पत्र मिल गये तो आपको देने में मुझे बड़ी प्रसन्नता होगी।[२]

क्या मेरा यह मानना ठीक है कि जहाँतक आपकी बात है, पहली बार दिल्ली जानेमें आपका कोई ऐसा इरादा नहीं था कि सत्याग्रहके हकमें आप अधिकारियोंसे टक्कर लें?

जी नहीं, मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं था।

मेरा खयाल है, आप उस समय जानते थे कि स्वामीजीको दिल्लीके जन-समुदायको अपनी राह ले जानेमें बड़ी कठिनाई हो रही थी और पुलिस अधिकारी भी इसके कारण बहुत चिन्तित थे?

जी हाँ।

तो आपका कहना यही है न कि दिल्लीको प्रस्थान करनेमें आपका इरादा स्थितिको बिगाड़ना नहीं बल्कि सुधारना था!

मैं दिल्लीके अधिकारियोंकी मदद करनेको जा रहा था।

अब में आपसे एक-दो बातोंके बारेमें पूछना चाहूँगा। श्री गांधी, वैसे में भाषण आदिको उद्धृत करनेमें विश्वास नहीं रखता। मेरे सामने कुछ रिपोर्ट हैं, लेकिन उन्हें पूरा पढ़ना मेरे लिए सम्भव नहीं है, लेकिन में १३ अप्रैलको अहमदाबादमें दिये गये आपके भाषणकी कुछ पंक्तियाँ पढ़कर सुनाता हूँ।

१३ को या १४ को?

  1. मूलमें यहाँ एक पादटिप्पणी है : "न श्री गांधीको मिल पाये और न अन्यत्र हो।" स्पष्ट ही यहाँ स्वामी श्रद्धानन्दके लिखित बयानकी ओर ध्यान नहीं दिया गया।
  2. देखिए पृष्ठ ४१२ को पादटिप्पणी १।