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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


क्या आपका ऐसा खयाल था कि दिल्ली जाकर अगर आप गिरफ्तार हो जाते तो उससे देश-भर में या उसके कुछ हिस्सों में उत्तेजना फैलेगी और यह बात रौलट विधेयकका पास होना रोकने की दृष्टिसे अधिक प्रभावकारी होगी?

जी नहीं, बिलकुल नहीं। अगर बात ऐसी होती तो मैं सीधे दिल्ली के लिए प्रस्थान कर जाता और तनिक भी संकोच-विकोच या सोच-विचार न करता। यहाँ मैं बस अपनी बातको पुष्ट करने के खयालसे इतना कह देना चाहता हूँ कि उस समय मुझे इसका कोई आभास नहीं था कि अमृतसर में या अन्यत्र क्या-कुछ घटित हुआ है।

अमृतसर की घटना १० तारीखको हुई[१], जब आप गाड़ीमें वापस आ रहे थे। आप ठीक-ठीक कब बम्बई पहुँचे?

११ तारीखको।

मैं समझता हूँ, उस समय अहमदाबाद आनेके लिए आपके पास बहुत फौरी तकाजे आ रहे थे?

जी हाँ।

क्या वे लोग आपके अपने स्थानपर पहुँचनेके तुरन्त बाद आपसे मिले?

नहीं। जहाँतक मुझे याद है, मेरा कोई मित्र मुझसे नहीं मिला।

क्या बम्बई पहुँचते ही आपको अहमदाबाद आनेका कोई सन्देश मिला?

सन्देश मुझे दूसरे दिन मिला। मैं ११को पहुँचा और सन्देश मुझे १२को मिला।

तो आपके पास, उन दिनों देशमें जो कुछ हो रहा था, उससे अपने-आपको अवगत रखने के साधन अच्छे नहीं थे, और फलतः आपको यह मालूम नहीं हो रहा था कि देशमें क्या कुछ हो रहा है?

जी हाँ, ऐसा ही है।

वह आपके फिरसे दिल्ली जानेकी जो बात है उसे में फिर आपके सामने ला रहा हूँ, क्योंकि यह आपके गिरफ्तार करके लौटा दिये जानेके सिर्फ चन्द दिनों बादकी बात है। मेरा खयाल है आपका कहना यही था कि जब आप पहली बार दिल्ली गये उस समय आपका उद्देश्य यह नहीं था कि पुलिससे झगड़ा मोल लें, बल्कि आप वहाँकी स्थिति सुधारनेको हो गये थे?

जी हाँ।

मैं नहीं समझता कि जिसे लोग सविनय अवज्ञाके नामसे जानते हैं, उसे रोकने के लिए आपने जो कार्रवाईकी, उसके सम्बन्धमें मेरे सामने कोई आधिकारिक तथ्य प्रस्तुत हैं। लेकिन मेरा खयाल है आपने अपने-आपको सविनय अवज्ञा अस्थायी तौरपर स्थगित रखने की सलाह देनेको विवश महसूस किया और मेरे सामने जो कागजात हैं उनके अनुसार यह बात १८ अप्रैलको की गई।

जी हाँ।

  1. भोड़ने आगजनी, लूट-पाटके अलावा कुछ यूरोपीयोंकी हत्या भी कर डाली थी।