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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हम जो माँगते हैं तुरन्त मिल जाये। परन्तु जब सभी ऐसा करने को तैयार नहीं हैं और जब सत्याग्रही लोग मुट्ठी भर ही हैं, तब हमें सत्याग्रहके सिद्धान्तसे फलित हो सकनेवाले दूसरे उपाय ढूँढ़ने पड़ते हैं। ऐसा एक उपाय कानूनकी सविनय अवज्ञा है। मैंने यह पहले ही समझा दिया है कि हमने थोड़े समयके लिए सविनय अवज्ञा आन्दोलन क्यों स्थगित किया है। जबतक हम जानते हैं कि सविनय अवज्ञा आन्दोलनसे दंगे और हिंसा फैल जानेकी बहुत सम्भावना है, बल्कि लगभग निश्चय है, तबतक कानूनका पालन न करना सविनय अवज्ञा नहीं कहला सकता। बल्कि ऐसी अवज्ञा तो विचारहीन, विनयहीन और सत्यरहित कहलायेगी।" अनुभवसे यह जान लेनेके बाद कि दूसरे लोगोंके लिए सविनय अवज्ञा और अन्य प्रकारकी अवज्ञाके बीच कोई निश्चित रेखा खींच सकना, आप जितना समझे थे उससे भी कठिन है, आपने इसे स्थगित कर दिया?

जी हाँ।

मैं आपसे एक बात पूछना चाहता हूँ श्री गांधी। आप सारे भारतकी राजनीतिमें दिलचस्पी लेते रहे हैं, मैं चाहता हूँ आप यथासम्भव इस विषयके सम्बन्ध में सारे भारतकी बात बतायें। पंजाब और दिल्ली तथा अन्य स्थानोंमें जो कुछ घटित हुआ, उसकी ओर मुड़कर देखनेसे क्या आपको ऐसा लगता है कि सत्याग्रहके सिद्धान्तोंको गलत रूपमें समझने के फलस्वरूप गत वर्ष अप्रैल और मई महीने में सारे भारतमें अराजकताके प्रति एक अनुचित ढंगकी सहानुभूति रखनेकी प्रवृत्ति और पर्याप्त रूपसे कानूनकी सत्ता माननेकी आवश्यकताको न देख पानेकी प्रवृत्ति रही है?

जहाँतक में जनताकी भावनाकी थाह ले पाया हूँ, मैं नहीं समझता कि ऐसा कहना ठीक होगा

क्या आप अपने-आपको सत्याग्रह आन्दोलनके द्वारा ऐसा कुछ करनेका अपराधी समझते हैं जिससे भारतीय जनताकी कानून मानने की प्रवृत्तिको क्षति पहुँची हो?

मैं अपने को कुछ-एक लोगोंकी हदतक इस प्रवृत्तिको अस्थायी तौरपर क्षति पहुँचानेका अपराधी मानता हूँ। मैं इसे महसूस करता हूँ, लेकिन मुझे क्षण-भरको भी यह नहीं लगता कि इस अवधि में जनता आम तौरपर अराजकताको भावनासे ग्रस्त रही है।

हाँ, इस देशके कुछ हिस्सों में अन्य हिस्सों की अपेक्षा उत्तेजनाके अधिक बड़े कारण मौजूद थे। इसका एक उदाहरण तो पंजाब है और अन्य उदाहरण भी हैं, जिनका उल्लेख करनेकी जरूरत नहीं। लेकिन में इसको इस रूपमें समझता हूँ या कहिये पेश करता हूँ कि जहाँ-जहाँ लोग ज्यादा उत्तेजित हुए वहाँ-वहाँ आपके मन्तव्यको गलत रूपमें समझने की सम्भावना ज्यादा थी?

मेरा खयाल है कि जहाँ लोगोंने सत्याग्रहके सिद्धान्तको नहीं समझा, वहीं उसकी गलत व्याख्या करनेकी सम्भावना ज्यादा थी। में यह देखकर दंग रह गया कि पहली