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उपद्रव जाँच समितिके सामने गवाही

ही बार पंजाबके लोगोंने स्वयं आकर मुझसे कहा, "ओह, अगर हमने सत्याग्रहके सिद्धान्त को समझा होता तो हमारा आचरण कितना भिन्न हुआ होता।"

और फिर यह भी है, है न, कि फरवरीके तीसरे हफ्ते में जब आपने यह विशेष आन्दोलन प्रारम्भ किया, उससे काफी पहलेसे ही एक प्रचार-आन्दोलन चल रहा था, जिसमें सारे भारतके अखबारों में कानूनकी अवज्ञाकी बातको एक प्रमुख स्थान दिया गया था?

जी हाँ, जी हाँ, निश्चय ही।

और आपका विचार एक समिति नियुक्त करनेका था जो यह निर्धारित करती कि किन कानूनोंकी अवज्ञा करनी है. . .?

जी हाँ, बात ऐसी ही है; और हमने अपनी बैठकोंमें अक्सर इस बातपर विचार-विमर्श किया और मैंने इसे अपने तई अधिकसे-अधिक स्पष्ट कर दिया।

आप चाहते थे, बम्बई और अहमदाबाद दोनोंके लिए बम्बई में एक समिति हो, यही न?

जी हाँ, और बस इतना ही।

और निस्सन्देह आपका इरादा यह था कि यह सविनय अवज्ञा भारतके कुछ हिस्सों में चलाई जाये जहाँ इस तरहकी 'सभाएँ' हों। क्या आप यह चाहते थे कि हर स्थानकी अपनी अलग सभा हो, जो यह निर्धारित करे कि किन कानूनोंकी अवज्ञा करनी है?

हाँ, ऐसा किया गया था, लेकिन मेरा खयाल है नाम मात्रको ही; क्योंकि जहाँ कहीं ऐसा किया गया उन सभी जगहों की सभाओंने मुझे अध्यक्ष नियुक्त कर दिया था। कारण यह था कि उन्हें लगा, और ऐसा लगना स्वाभाविक ही था, कि इस सम्बन्ध में उन्हें मुझसे मार्ग-दर्शन लेना चाहिए। मद्रास में एक स्थानीय समिति गठित की गई थी और उसने मुझे अध्यक्ष बनाया । यह विचार मुझे कुछ अच्छा भी लगा और ऐसा ही संयुक्त प्रांत[१]में भी किया गया। खयाल यह था कि हमारी नीति सर्वत्र एक-सी हो।

क्या आपके मनमें कुछ ऐसा विचार भी आया कि विभिन्न क्षेत्रोंके लिए उल्लंघनार्थ अलग-अलग कानून निर्धारित किये जायें?

हाँ, यह विचार मेरे मनमें अवश्य आया था कि जरूरत पड़े तो ऐसा किया जाये, लेकिन अन्यथा नहीं।

आपके भाषणों में मैं देखता हूँ, आपने अपने आन्दोलनकी चर्चा कभी "सविनय अवज्ञा" कहकर की है और कभी "अनाकामक प्रतिरोध" [सत्याग्रह] कहकर। यह पहला मुहावरा तो स्पष्टतः थोरोसे लिया गया है लेकिन दूसरेसे अंग्रेज लोग भी काफी वाकिफ हैं। अब अगर किसी व्यक्तिको सरकारकी ओरसे या किसी और सूत्रसे कोई आदेश प्राप्त होता है, और उसकी अन्तरात्मा कहती है कि यह ठीक नहीं है, तो

  1. वर्तमान उत्तर प्रदेश।