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उपद्रव जाँच समिति के सामने गवाही

सर चि॰ ह॰ सीतलवाड द्वारा पूछताछ :

रौलट विधेयकोंके बारेमें आपकी राय पूछी गई थी और आपको बताया गया कि जो रौलट अधिनियम पास किया गया है उसमें दरअसल किस हदतक भारत रक्षा अधिनियम की धाराओंको ही दुबारा पास किया गया है। भारत रक्षा अधिनियमकी धाराएँ केवल आपत्कालीन उपायके रूपमें युद्धकी अवधितक के लिए ही स्वीकार की गई थीं, लेकिन इसीसे इन धाराओंको युद्ध समाप्त हो जानेके बाद भी बनाये रखनेका औचित्य नहीं सिद्ध होता। इस विधेयकके प्रति एक आपत्ति यही थी न?

जी हाँ।

और तब यह बताया गया था कि रौलट अधिनियम जिस रूपमें पास किया गया है, उस रूपमें उसे किसी प्रान्त-विशेष या स्थान-विशेषमें तभी लागू किया जा सकता है जब भारत सरकार उसका क्षेत्र विस्तार करके उसे उस प्रान्त या स्थानमें लागू कर दे। क्या आपने ऐसा नहीं देखा है कि सरकार द्वारा बनाये गये अन्य अधि-नियमोंके अन्तर्गत इसी प्रकारके क्षेत्र-विस्तार ऐसे कारणोंके आधारपर किये गये हैं जिन्हें लोगोंने अपर्याप्त माना है?

जी हाँ।

और यह भी सच है न कि रौलट विधेयकोंके विरुद्ध प्रमुख आपत्ति यह नहीं, बल्कि यह थी कि इसमें न्यायपालिकाके नियंत्रणोंसे मुक्त कार्यपालिकाके हाथोंमें बहुत विस्तृत अधिकार देनेकी कोशिश की गई है?

जी हाँ।

और साथ ही समस्त गैर-सरकारी सदस्योंके सम्मिलित विरोधके बावजूद विधान परिषद् में यह अधिनियम जिस तरह पास कर दिया गया—और सो भी ऐसे अवसरपर जब लोगोंको खासे परिमाणमें स्वशासन दिया जानेको था—उसके कारण सारे देशमें बहुत ही उग्र ढंगका क्षोभ फैल चला?

जी हाँ।

अब आपके सत्याग्रहके सिद्धान्तके बारेमें जहाँतक में समझता हूँ, उसमें सत्यके पालनकी बात है?

जी हाँ।

और सत्यका पालन करते हुए कष्टोंको आगे बढ़कर स्वीकार करने और दूसरेके साथ किसी प्रकारकी हिंसात्मक कार्रवाई न करनेकी बात भी है?

जी हाँ।

मेरा खयाल है कि सत्याग्रहका मूल सिद्धान्त यही है?

जी हाँ, यही है।

अब उस सिद्धान्तके अनुसार, क्या सत्य है इसे कौन निश्चित करेगा? क्या स्वयं सत्याग्रही?

जी हाँ, स्वयं वही।