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उपद्रव जाँच समितिके सामने गवाही

जरूरत नहीं, लेकिन फिर अन्य सभी लोग सत्यके उस स्वरूपका अनुगमन करेंगे। वे यह तो जानेंगे ही कि उन्हें किसीके प्रति हिंसा नहीं करनी है, और इस प्रकार सत्याग्रहियोंका बहुत बड़ा दल तैयार हो जायेगा।

तो मतलब यह कि मैंने जिन उच्च कोटिके नैतिक एवं बौद्धिक संस्कारोंकी चर्चा की है उन संस्कारोंसे युक्त एक या एकाधिक व्यक्ति किसी विशेष निष्कर्षपर पहुँचेंगे और तब एक बड़ी संख्या में अन्य लोगोंको उनका अंधानुसरण ही करना होगा?

जी नहीं, अंधानुसरण नहीं। मैं इसे अंधानुकरण तो नहीं कहूँगा लेकिन साथ ही मैं अन्य लोगोंसे उसी स्तरके नैतिक एवं बौद्धिक संस्कारोंकी अपेक्षा भी नहीं करूँगा जिस स्तरके संस्कारोंकी अपेक्षा 'क' से करूँगा।

मैंने तो समझा था, आप इस बातपर मुझसे सहमत हैं कि कोई आपके सत्याग्रहके सिद्धान्तका सच्ची भावनासे अनुगमन करे, इसके लिए उसका उच्च कोटिके नैतिक एवं बौद्धिक संस्कारोंसे युक्त होना आवश्यक है, लेकिन आप तो कहते हैं कि सभी लोगोंसे उसी स्तरकी माँग करना आवश्यक नहीं, क्योंकि उन्हें तो बस, उतनी उच्च कोटिके नैतिक एवं बौद्धिक संस्कारोंसे युक्त व्यक्तिने जो कुछ तय किया है, उसका अनुसरण भर करना है?

आप चाहें तो ऐसा कह सकते हैं। लेकिन मैं सिर्फ यह समझाना चाहता हूँ कि हर व्यक्तिको, जबतक कि वह सत्यका पालन स्वतन्त्र रूपसे ही करना न चाहता हो, तबतक वैसा करनेकी कोई जरूरत नहीं है। मैं तो इतना ही कहता हूँ कि अगर कोई एक व्यक्ति अपने मनमें जीवनकी एक योजना निश्चित करता है तो उसके अनुसार चलनेके लिए सबका वैसे ही बौद्धिक एवं नैतिक संस्कारोंसे युक्त होना आवश्यक नहीं है। मैंने जो कुछ कहा है, उससे अगर आपने ऐसा समझा हो तो मुझे आगे कुछ नहीं कहना है।

तो मैं मान लेता हूँ कि अपनी योजनाके सम्बन्धमें आपका जो विचार है उसके अनुसार उसमें यह निश्चय करना कि कौन-सा रास्ता सही और सच्चा है, उच्च कोटिके बौद्धिक एवं नैतिक संस्कारोंसे युक्त लोगोंका काम है और एक भारी संख्या में दूसरे लोगों का काम, जो अपने अपेक्षाकृत निम्न कोटिके नैतिक एवं बौद्धिक संस्कारोंके कारण स्वयं ऐसे ही निष्कर्षोंपर पहुँचने में असमर्थ हैं, उनका अनुगमन करना है?

मैं तो ऐसा नहीं मान सकता, क्योंकि मैंने ऐसा कुछ नहीं कहा है। मैं यह नहीं कहता कि उन्हें अपनी विवेक-बुद्धिका उपयोग नहीं करना है; मैं तो इतना ही कहता हूँ कि वे अपनी विवेक-बुद्धिका उपयोग करें, इसके लिए उनका भी वैसे ही मानसिक एवं नैतिक संस्कारोंसे युक्त होना आवश्यक नहीं।

क्या इस कारणसे कि उन्हें उन लोगोंका निर्णय स्वीकार करना है जो अपनी विवेक-बुद्धिका ज्यादा अच्छी तरहसे उपयोग कर सकते हैं और जो अपेक्षाकृत अच्छे नैतिक तथा बौद्धिक संस्कारोंसे युक्त हैं?

स्वभावतः, लेकिन मेरा खयाल है कि यह बात मानव स्वभावका अंग है; मगर किसी सामान्य व्यक्तिमें मुझे जो कुछ मिल सकता है, उससे अधिककी में उससे अपेक्षा नहीं रखता।