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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


मैं इसको दूसरी तरहसे कहूँगा। आपके प्रचारकी सफलता अनिवार्यतः इस बात पर निर्भर करती है कि एक बहुत बड़ी संख्यामें सामान्य-जन ऐसे लोगोंके निष्कर्षोको स्वीकार करें जिनमें उनका विश्वास है और जिन्हें उच्च कोटिके बौद्धिक एवं नैतिक संस्कारोंसे युक्त होने का सौभाग्य प्राप्त है। अगर हर व्यक्ति, उन नैतिक और बौद्धिक संस्कारोंसे युक्त हुए बिना, अपने लिए यह तय करने लग जाये कि कौन-सा रास्ता सही है, तो फिर उलझन ही होगी। इस प्रकार अपनी योजनाको सफलताके लिए यह आवश्यक है और उसमें यह बात आती है कि पहले तो अमुक संख्यामें कुछ लोग, जो उच्च कोटिके नैतिक एवं बौद्धिक संस्कारोंसे युक्त हैं, सत्यका अनुगमन करेंगे और यह निश्चित करेंगे कि सत्य क्या है, और फिर बहुत सारे लोग, जो ऐसे संस्कारोंसे युक्त नहीं हैं, उनके निष्कर्ष को स्वीकार करके उनका अनुगमन करेंगे?

इस निष्कर्षको मैं सहज नहीं मानता कि इस आन्दोलनकी सफलता उसी बात पर निर्भर करती है। जहाँ सत्याग्रह है, वहाँ तो इस आन्दोलनकी सफलता एक ही सर्वांगपूर्ण सत्याग्रहीके अस्तित्वपर निर्भर करती है। एक सत्याग्रही भी इस ढंगसे और ऐसे अर्थों में सफलता प्राप्त कर सकता है जिस ढंगसे और जिन अर्थों में किसी हिंसात्मक योजनाके अन्तर्गत बहुत सारे लोग भी सफलता प्राप्त नहीं कर सकते।

श्री गांधी, मैंने तो यह समझा कि इसका पहला हिस्सा यह है कि यह, जिस अर्थमें आपने कहा है उस अर्थमें, सत्यके पालनका सिद्धान्त है और इसे ठीक ढंगले व्यवहारमें वही उतार सकता है जो उच्च कोटिके ऐसे नैतिक एवं बौद्धिक संस्कारोंसे युक्त है जो जनसाधारणको नसीब नहीं हैं।

मैं तो कहूँगा, जो ऐसे नैतिक एवं बौद्धिक संस्कारोंसे युक्त हो, जिनके बलपर वह सत्यका स्वतन्त्र रूपसे अन्वेषण कर सकता हो।

और इसलिए जहाँतक सामान्य जनोंका सम्बन्ध है, उन्हें ऐसे लोगोंके निष्कर्ष स्वीकार करने हैं जो वैसा करनेमें सक्षम हैं?

हाँ, लेकिन अपने विवेकका पूरा उपयोग किये बिना नहीं।

लेकिन वे तो अपनी स्वल्प विवेक-शक्तिका ही उपयोग कर सकते हैं?

निस्सन्देह।

और जैसा कि आपने कहा है, आपके द्वारा बताये गये ढंगसे सत्यका सच्चा पालन करनेके लिए ऐसे नैतिक एवं बौद्धिक संस्कारोंकी आवश्यकता है जो साधारण मनुष्यके लिए दुर्लभ हैं?

जी हाँ, हर मौलिक चीजके साथ ऐसा ही है।

मैं कोई इस आन्दोलनकी आलोचना करनेके खयालसे यह नहीं कह रहा। में तो सिर्फ सही स्थिति समझना चाहता हूँ।

शायद मैं आपके शब्दोंसे जितना मतलब निकालनेका मुझे अधिकार है, उससे ज्यादा मतलब निकाल रहा हूँ।