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उपद्रव जाँच समिति के सामने गवाही


मेरे प्रश्नोंको आप अनावश्यक सन्देहकी दृष्टिसे न देखें?

यहाँ सवाल सन्देहका नहीं है, सर चिमनलाल, लेकिन मैं नहीं चाहता कि समिति या आप मेरी स्थितिको गलत समझें। बस।

तो मैं समझता हूँ, आपका कहना है कि आप अभीतक अपनेको एक पूर्ण सत्याग्रही नहीं समझते?

जी हाँ, नहीं समझता।

अगर ऐसी बात है तब तो श्री गांधी, सामान्य लोगोंके लिए वैसा हो पाना लगभग असंभव ही है।

लेकिन मैं तो किसी तरह अपनेको कोई असाधारण आदमी नहीं मानता।

आप भले ही अपनेको ऐसा न मानें, लेकिन आपके जीवन और आपके स्वभावको देखकर लोग यह जानते हैं कि आप असाधारण आदमी हैं और सत्याग्रह—जैसे सिद्धान्तका पूर्णतासे पालन कर सकते हैं। लेकिन क्या ऐसे बहुत सारे लोग नहीं हैं जिनके बारेमें यह आशा करना लगभग असम्भव है कि वे बिलकुल सही ढंगसे इसका पालन करेंगे?

उस हालत में तो सचाई यह होगी कि वे शायद सत्याग्रहका अभिप्राय समझे ही नहीं हैं। इसका मतलब यह होगा कि वे इस चीजसे बिलकुल ऊब गये हैं। अब उदाहरणके तौरपर आप दक्षिण आफ्रिकाके ४०,००० भारतीयोंको लें, जो सर्वथा असंस्कृत और अशिक्षित हैं, लेकिन ये लोग कभी भी ऐसे किसी निष्कर्षपर नहीं पहुँचे।

हो सकता है में गलतीपर होऊँ। लेकिन जब आप दक्षिण आफ्रिकाके ४०,००० लोगों की बात कहते हैं तो मैं समझता हूँ, उन्होंने आपके नेतृत्वका अनुसरण-भर किया?

जी हाँ, मेरे नेतृत्वका अनुसरण-भर—लेकिन स्थितिको देख-परखकर। अगर आपके पास समय हो और आप मेरे साथ एक बार दक्षिण अफ्रिकाकी गलियोंमें घूम लें तो आपको मालूम हो जायेगा कि आपके देशभाई वैसा इसलिए कर पाये क्योंकि उन्होंने मेरा अन्धानुसरण नहीं किया।

हाँ, लेकिन वहाँ दक्षिण आफ्रिकामें तो आपके सामने एक बड़ा और सीधा-सादा उद्देश्य था?

जी हाँ।

और वह एक ऐसा सवाल था जिसके सम्बन्धमें सभ्य संसारकी सहानुभूति उन लोगोंके साथ थी जो सत्याग्रहका पालन कर रहे थे और इतने से ही उस स्थितिमें और यहाँ जो स्थिति है उसमें बहुत अन्तर पड़ जाता है?

सत्याग्रहियोंके नियन्त्रणकी ठोस मिसाल लें, तो कोई भेद नहीं था। दक्षिण आफ्रिकामें मुझे अपने पक्षका समर्थन करनेवाली जितनी जानकारी संचित करनी पड़ी थी, उसकी अपेक्षा यहां कहीं ज्यादा करनी पड़ी है। दक्षिण आफ्रिकामें वे दो विरोधी शिविरोंमें बँटे हुए थे।