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१०. पत्र : जेम्स क्रिररको

[ अगस्त ७, १९१९][१]

प्रिय श्री क्रिरर,

मैंने अभी-अभी १० जुलाईके 'न्यू एज' में श्री मार्माडयूक पिकथॉलका हैरतमें डाल देनेवाला एक लेख देखा है। राजनीति-विभाग (पोलिटिकल डिपार्टमेंट) ने अन्य समाचारपत्रोंके साथ-साथ 'यंग इंडिया' को भी एक गुप्त नोटिस संख्या ४५१५ दिनांक २३ जुलाई, १९१९ को भेजा है। उसमें कहा गया है कि भारत सरकार चाहती है कि टर्कीके साथ सुलहकी शर्तोंको या इस विषयसे सम्बन्धित किसी भी ऐसे समाचारको भारतके समाचारपत्रोंमें, भारत सरकारकी पूर्व अनुमति लिए बिना प्रकाशित न किया जाये, जिससे भारतकी जनतामें उत्तेजना फैलनेकी आशंका हो। इस जानकारीको प्रकाशित करनेके सम्बन्धमें मैं अपने विचार वाइसराय महोदयको लिख चुका हूँ। मैंने उनको यह भी लिखा है कि इस मामलेमें जनताको सन्तोष दिलानेके लिए सार्वजनिक रूपसे घोषणा करना आवश्यक है। आप जानते ही है कि 'यंग इंडिया' की नीति पूरी तौर पर मेरी ही देखरेखमें निर्धारित होती है और मैं उसमें प्रकाशित होनेवाली सारी सामग्रीपर नियंत्रण रखता हूँ। मुझे लगता है कि श्री पिकथॉलने इस प्रश्नका जो विश्लेषण किया है, उसे मुझे जनताकी नजरमें लाना ही चाहिए। मुझे एकाएक विश्वास नहीं होता कि उस लेखमें दी गई सूचना सही है। लेकिन स्पष्ट है कि उन्होंने जो लिखा है, अधिकारपूर्वक लिखा है और उद्धृत सामग्री उद्धरण चिह्न लगाकर जैसीकी-तैसी दी है। कृपया मुझे जितनी जल्दी हो सके बतलाइये कि प्रकाशनके मामलेमें सरकार क्या चाहती है। मैं आपकी आसानीके लिए मूल लेख संलग्न कर रहा हूँ।"[२]

हृदयसे आपका,

मो० क० गां०

हस्तलिखित अंग्रेजी मसविदे (एस० एन० ६७८९) की फोटो नकलसे।

  1. जेम्स क्रिरर द्वारा ५ सितम्बरको लिखित उत्तर में इस तिथिका उल्लेख है।
  2. जेम्स किररने, गांधीजीका पत्र लिए क्षमा प्रार्थना करते हुए लिखा था : गलत पतेपर पहुँच जानेके कारण, उत्तर भेजने में विलम्बके “आप यदि अभी उस लेखको प्रकाशित करनेका विचार कर रहे हों तो मेरी समझ में उल्लिखित नोटिसकी शर्तें उसपर लागू होती हैं । श्री पिकथॉलने जहाँसे हवाले दिये हैं, वे कागज तो मेरे पास नहीं हैं। लेकिन उन्होंने अपने लेखके अन्तिम भागमें एक बड़ी ही गलत बात कही है कि 'कॉन्फ्रेन्स' मुस्लिम भावनापर आधारित सभी दलीलोंको हास्यास्पद समझती है । यह तो इस सम्बन्धमें ज्ञात सभी तथ्योंके विरुद्ध पड़ती है और उसके प्रकाशनसे भारतीय जनताके दिमागमें एक बिलकुल ही गलत तसवीर बनेगी।"