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उपद्रव जाँच समिति के सामने गवाही

आपने स्पष्ट शब्दों में भर्त्सना की, आत्म-नियन्त्रणका ही परिचय देना था? क्या आप मानते हैं कि उन्होंने यह आत्म-नियन्त्रण और आत्म-संयमका परिचय दिया?

मैं सिर्फ इतना ही कहूँगा कि भारत-भरमें जहाँ आपको इक्के-दुक्के ऐसे उदाहरण मिल जाते हैं, वहीं ऐसे असंख्य उदाहरण भी हैं, जिनमें लोग अत्यन्त अनुकरणीय आत्म-संयमका परिचय देते हैं। और इसीलिए हमें सौम्य हिन्दू" कहा गया है।

मैं कह सकता हूँ कि बहुतसे लोगोंने इन उपद्रवों में कोई भाग नहीं लिया और उस अर्थ में यह आत्म-संयम ही कहा जायेगा। लेकिन सवाल तो यह है कि आपकी गिरपतारीका समाचार सुनकर, जो उनके लिए उत्तेजनाका पहला कारण था, वे किस तरह उबल पड़े। अहमदाबादमें जो ये बर्बर कार्य किये गये, वे लगभग उसके तुरन्त बाद ही हुए?

मुझे तो इससे इतनी-सी बात समझ में आती है कि हम भी इस दिशा में बहुत दूरतक नहीं जा पाये हैं। मैंने खेड़ाके ७ लाख लोगोंको जगाया, आन्दोलित किया; वे लोग हैं भी बड़े दिलेर, फिर भी उन्होंने खेड़ा-संकटके समय, जो एक-दो दिन नहीं बल्कि छः महीनेतक जारी रहा था, बहुत ही गम्भीर उत्तेजनाके बावजूद अत्यन्त कठोर आत्म-संयमसे काम लिया।

मतलब यह कि विभिन्न हिस्सों में जो ये इतनी सारी हिंसात्मक कार्रवाइयाँ हुई उन्हें आप संयोग मात्र या ऐसी कोई अस्थायी चीज मानते हैं जिसकी पुनरावृत्तिकी सम्भावना नहीं है?

मैं ऐसा तो नहीं कहता लेकिन निश्चय ही ऐसी बातें बहुत कम होंगी और देशको अब सत्याग्रहका जो एक स्पष्ट बोध हो गया है उसको देखते हुए तो और भी कम। इस बातमें मुझे तनिक भी सन्देह नहीं है।

क्या आप ऐसा समझते हैं कि आपने देशके सामने जो उच्च आदर्श प्रस्तुत किये हैं, देशको अब उनकी प्रतीति हो गई है?

पूरे अर्थों में तो नहीं, लेकिन देशको इस उच्च आदर्शकी इतनी प्रतीति तो हो ही गई है कि मुझ जैसे लोग इसको फिर आजमा कर देखें, और अगर कोई ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई जिसमें इस तरहका संयम बरतना आवश्यक हो तो इसे फिरसे आजमाने में मुझे कोई हिचकिचाहट नहीं होगी, लेकिन जैसा कि मैंने कहा है, हर रोज़ तो कोई कानून तोड़ना नहीं चाहता।

क्या आपको भरोसा है कि अगर आप इसे फिर आरम्भ करें तो ऐसे उपद्रव फिर कहीं नहीं होंगे?

ऐसी स्थितिमें पहलेसे कुछ कह सकना कठिन है, लेकिन मुझे इस चुकनेके कारण यह देश अब तो बहुत बातका पूरा भरोसा है कि सत्याग्रहकी आगसे गुजर अधिक पवित्र, अधिक सौम्य हो गया है।

अब, आपकी बातोंसे जैसा मैं समझता हूँ उससे तो यही लगता है कि राजनीतिक क्षेत्र में सत्याग्रहके सिद्धान्तका प्रयोग अन्यायपूर्ण कानूनों को तोड़नेके लिए ही किया जाता है?

जी हाँ।