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उपद्रव जाँच समितिके सामने गवाही


यह सच है कि परिणाम ऐसा भी हो सकता है, भले ही यह सत्याग्रहका कोई आवश्यक आदर्श न हो। आपके विचारसे, किसीको उस फलकी प्राप्तिके उद्देश्यसे ऐसा नहीं करना चाहिए, लेकिन यह आशा हो सकती है कि अगर एक खास संख्यामें जेल जाकर कष्ट भोगनेवाले लोग मिल जायें तो हो सकता है, अधिकारियोंके मनमें सहानुभूतिका भाव जगे और जिसे आप सही दृष्टिकोण मानते हैं, उसे उसकी प्रतीति हो। अब अगर किसी विशेष अवसरपर ऐसा किया जाये और इस प्रकार बहुत सारे लोग जेल जाकर कष्ट भोगें तो क्या इससे लोगोंके मनमें सरकारके प्रति किसी हद-तक घृणाका भाव भी पैदा नहीं होगा, क्योंकि वे तो स्वभावतः ऐसा सोचेंगे कि हम इस सरकार के सामने इतने असहाय हैं कि जेल जानके सिवा कुछ कर ही नहीं सकते। इन परिस्थितियोंमें यदि आप अपने ऊपर नियन्त्रण रखें और हिंसाकी ओर कदम न बढ़ायें तब भी क्या आपके मनमें स्वभावतः उस सत्ताके विरुद्ध एक प्रकारकी तीव्र भावना उत्पन्न नहीं हो जायेगी जिसके चलते आपको स्वयं आगे बढ़कर कष्ट उठानेकी जरूरत पड़ी है?

जी नहीं, आप जो कुछ कह रहे हैं यह मेरे ३० सालके अनुभवोंसे ठीक उलटा है। न स्वयं मुझमें और न मुझसे सम्बन्धित लोगोंमें ही कष्ट सहनके परिणामस्वरूप कमसे कम, जितना स्वीकार किया जाता है, उससे कुछ अधिक दुर्भावना आई है, लेकिन दूसरी ओर मुझे ऐसी दुर्भावनासे छुटकारा पानेवाले बीसियों लोगोंके उदाहरण मालूम हैं, क्योंकि यह सिद्धान्त ही ऐसा है जिसमें आप दुर्भावनाओं और ऐसे ही अन्य मानवीय आवेगोंसे जल्दीसे-जल्दी छुटकारा पा जाते हैं। आप देखिए कि आज दक्षिण आफ्रिकामें उस तीव्र संघर्षकी समाप्तिके बाद क्या हो रहा है, जिसमें कितने ही निर्दोष लोगोंको कष्ट झेलना पड़ा था। शासकों और भारतीयोंके सम्बन्ध अच्छेसे-अच्छे हो गये हैं और जब युद्धके समय भारतीयोंपर बहुत गम्भीर ढंगकी निर्योग्यताएँ लगी हुई थीं तब भी उन्होंने स्वेच्छासे अपनी सेवाएँ अर्पित कीं, हालांकि वहाँ नई भरतीका अभियान जैसी कोई चीज भी नहीं चलाई गई थी। फौजमें भरती होना या न होना बिलकुल ऐच्छिक था और जिन लोगोंने चाहा उन्होंने अपनी इच्छासे सेनामें दाखिल होकर उन्हीं सज्जनोंके अधीन काम किया जिन्होंने, उनके विचारसे, उन्हें अधिकसे-अधिक कष्ट दिया था; और जब जनरल स्मट्स लौटे तो उन्हीं लोगोंने उन्हें स्वेच्छासे एक मानपत्र भेंट किया जिन्हें उन्होंने, उनके खयालसे, अनाक्रामक प्रतिरोध आन्दोलनके दौरान दबाया और सताया था।

तो जब रौलट विधेयक पास हुए तो आपने देशके सामने सत्याग्रहका सिद्धान्त पेश करनेका निश्चय किया?

जी हाँ।

और आप चाहते थे कि जनसाधारण उसी अर्थ में सत्याग्रही बन जाये?

मैं चाहता था, वह सत्याग्रहकी प्रतिज्ञा लिये बिना इस आन्दोलनमें भाग ले।