पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 16.pdf/४६५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४३१
उपद्रव जाँच समिति के सामने गवाही

है, तो उसे स्थगित कर दिया, लेकिन में इस सिद्धान्तपर—उसके एक पक्षपर—उसके अहिंसा पक्षपर जोर देना चाहता था, और इसलिए मैंने सविनय अवज्ञा समाप्त कर दी—और समाप्त कुछ इसलिए नहीं कर दी कि वह सर्वसाधारणके उपयुक्त नहीं थी बल्कि इसलिए कि वह अवसरके उपयुक्त नहीं थी। दूसरे शब्दोंमें लोगोंको उसकी सीख देनेका यह उचित अवसर नहीं था।

तो आप अप्रैल महीनेकी घटनाओंके अनुभवसे इस निष्कर्षपर पहुँचे कि सविनय अवज्ञाका प्रचार अवसरके उपयुक्त नहीं है?

आप जैसा मानते है, वैसे किसी निष्कर्षपर मैं उस कारणसे तो नहीं पहुँचा।

नहीं, मेरे कहनेका मतलब यह नहीं, लेकिन आप इस निष्कर्षपर तो पहुँचे कि परिस्थितियों को देखते हुए इस समय सत्याग्रह करना अनुपयुक्त है?

जी हाँ।

और इसलिए आपने उसे स्थगित कर दिया?

जी हाँ।

और आप उस निष्कर्षपर इसलिए पहुँचे कि घटनाओंने आपको यह दिखा दिया कि सविनय अवज्ञासे आपका क्या मतलब है, इसे लोगोंने सचमुच समझा नहीं है?

जी हाँ।

और इस प्रकार उन्होंने अपने-आपको गुमराह किया था?

जी हाँ।

जब आपने पहले-पहल सविनय अवज्ञाके सम्बन्ध में निर्णय किया तो मेरा खयाल है, वह रौलट अधिनियम के संदर्भमें ही किया था?

जी नहीं, जब प्रतिज्ञापर पहले-पहल हस्ताक्षर किये गये उस समय अहमदाबाद आश्रम में पहली बैठकमें ही सारी बातें सोच ली गई थीं।

रौलट अधिनियम तथा अन्य कानूनोंको भी भंग करनेकी बात सोच लो गई थी?

जी हाँ।

ऐसा है श्री गांधी कि मैं अपनी जानकारीको जरा दुरुस्त भर कर लेना चाहता हूँ।

जी हाँ, सचमुच बहुत-से लोगोंका खयाल रहा है कि दूसरे कानूनोंके उल्लंघनकी बात बादमें जोड़ी गई। लेकिन बात ऐसी है नहीं।

अगर मैं भूल नहीं रहा हूँ तो यह प्रतिज्ञा सबसे पहले श्रीमती बेसेंटने ली?

अब इस सम्बन्धमें दो तरह की बातें कही जाती हैं। उन्होंने प्रतिज्ञा ली भी और नहीं भी ली। मुझे यह बताया गया कि उन्होंने वास्तवमें समिति सम्बन्धी धाराको निकालकर शेष पूरीकी-पूरी प्रतिज्ञा ली। वे समितिके प्रभुत्वको स्वीकार नहीं करना चाहती थीं। जैसा कि आपने देखा है, यहाँ सवाल सिर्फ एक मर्यादा निश्चित कर देनेका था, लेकिन उन्होंने उसे गलत समझा।