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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय



क्या ऐसा नहीं हुआ कि उन्होंने लोगोंका ध्यान इस बातकी ओर दिलाया कि जबतक आप राजद्रोही और अराजकतावादी बनकर ऐसी स्थिति पैदा नहीं कर देते जिससे आपपर रौलट अधिनियम की धाराएँ लागू हो जायें तबतक उसका उल्लंघन करना सम्भव नहीं है?

मुझे याद है मैंने अखबार में यह बात पढ़ी थी, लेकिन जहाँतक मुझे याद है, यह बात उनके तार और बातचीतसे पहले की है।

उन्होंने इस ओर लोगोंका ध्यान तो दिलाया?

निःसन्देह यहाँ उन्होंने उस कानूनका गलत अर्थ लगाया, लेकिन उन्होंने ऐसा कहा जरूर।

मैं जानना यह चाहता हूँ कि दूसरे कानूनोंके उल्लंघन करनेका निर्णय क्या तब लिया गया जब उन्होंने, मैंने जो कुछ बताया है, उस बातकी ओर लोगोंका ध्यान दिलाया?

जी नहीं, बिलकुल नहीं! जब श्रीमती बेसेंटने, जो-कुछ आपने बताया है, वह बात लिखी तब प्रतिज्ञाको प्रकाशित हुए कमसे कम कुछ दिन तो बीत ही गये थे। जब प्रतिज्ञापर अहमदाबादमें हस्ताक्षर किये गये उस समय श्रीमती बेसेंट उसके बारेमें कुछ नहीं जानती थीं।

मैं सिर्फ यह जानना चाहता हूँ कि जो कुछ मुझे याद है वह ठीक है या नहीं। उन्होंने वही तो बताया था कि इस अधिनियमका स्वरूप भी ऐसा है कि इसकी अवज्ञाकी गुंजाइश नहीं रहती, लेकिन अन्य कानूनोंकी अवज्ञामें शामिल होने से उन्होंने इसलिए इनकार कर दिया कि उससे अव्यवस्था फैलती?

जी हाँ, मुझे मालूम है कि उन्होंने यह दलील दी थी और जहाँतक इस आन्दोलनका अन्य कानूनोंकी अवज्ञासे सम्बन्ध था, उन्होंने इसका बचाव किया था, लेकिन मुझे यह नहीं मालूम कि उन्होंने आखिरकार किन कारणोंसे उसमें शामिल होनेसे इनकार कर दिया।

लेकिन कारण तो उन्होंने अपने अख़बारमें बताया था?

हाँ, उन्होंने अपने 'न्यू इंडिया' में इस आशयका एक लेख तो अवश्य लिखा था।

और उसमें यह कहा गया है कि इस तरहसे कानूनोंकी अवज्ञा करनेका अवश्यम्भावी परिणाम होगा अव्यवस्था?

जी हाँ।

अब विभिन्न कानूनोंकी सविनय अवज्ञाके सम्बन्धमें यह जानना चाहूँगा कि क्या इसके पीछे किसी हदतक कुछ ऐसा विचार काम कर रहा था कि कानूनोंके उल्लंघन करनेका परिणाम यह होगा कि सरकार परेशान होगी या सुव्यवस्थित शासन असम्भव हो जायेगा। और तब सरकारको रौलट विधेयकके सम्बन्धमें जनताको इच्छाके आगे झुकना पड़ेगा और इस प्रकार वह चीज प्राप्त हो जायेगी जिसे आपने खुद ही