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उपद्रव जाँच समिति के सामने गवाही

सरकारको जनताकी इच्छाके सामने झुकाना कहा है। क्या उसके पीछे कोई ऐसा विचार था?

जी नहीं, यह सरकारको परेशान करना नहीं है, बल्कि इसके पीछे जो विचार है वह है जिस सरकारपर से हमारा विश्वास उठ गया है, जिसके प्रति हमारे मनमें कोई आदर नहीं रह गया है उसके साथ सहयोग करनेसे अपना हाथ खींच लेनेके अपने अधिकारका उपयोग करना, और इस अधिकारके उपयोगका सवाल पूरी तरह इस बातपर निर्भर करेगा कि सरकारने कहाँतक विश्वास खो दिया है।

अब इस विशेष मामले अर्थात् रौलट अधिनियमको लें जिसपर हम अभी विचार कर रहे हैं। रौलट अधिनियम के पास हो जानेसे क्या आप और आपके सहयोगी कार्यकर्त्ता इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि सरकारका यह आचरण ऐसा था जिसके कारण उसने अपना विश्वास खो दिया और इस तरह सहयोग प्राप्त करनेका समस्त अधिकार भी?

नहीं, नहीं, ऐसा तो बिलकुल नहीं है।

मैं स्पष्ट जानना चाहता हूँ?

निर्णायक तथ्य यह था कि रौलट कानून तो ऐसा नहीं है जिसकी सक्रिय अवज्ञाकी हर समय गुंजाइश हो, और इसलिए अगर हम सरकारको प्रभावित करना चाहते हैं तो हमें दृढतापूर्वक कोई और रास्ता अपनाये रखना चाहिए, और यह काम हमने ऐसे दूसरे कानूनोंका सक्रिय उल्लंघन करके किया जिनके उल्लंघनमें नैतिक अधःपतनकी कोई बात नहीं थी।

अब, अगर आप सचमुच दूसरे कानूनों को तोड़ते हैं तो क्या आप यह मानेंगे कि इसके परिणामस्वरूप सुव्यवस्थित शासन किसी हदतक असम्भव हो जायेगा?

जी नहीं, मैं ऐसा नहीं कहूँगा। जहाँ अपराधकी वृत्तिसे सर्वथा मुक्त लोग रहते हों वहाँ सुव्यवस्थित शासन असम्भव हो ही नहीं सकता। स्वभावतः हमें ऐसा मानकर ही चलना है कि लोगोंमें अपराधी प्रवृत्तिका सर्वथा अभाव है।

आपने उल्लंघनार्थं जो कानून निर्धारित किये, वे क्या ऐसे कानून थे जिनका आप तथा अन्य लोग अबतक पालन करते आये थे?

जी हाँ।

जब वे कानून बनाये गये उस समय तो आपने उन्हें इतना अन्यायपूर्ण नहीं समझा कि लगे कि उनकी अवज्ञा करनी चाहिए। लेकिन जिन कानूनोंका आप इतने वर्षोंसे पालन करते आये हैं, अब उन्हींकी अवज्ञा करनेका निश्चय करनेसे क्या ऐसा आभास नहीं मिलता कि इसका उद्देश्य सुशासनको असम्भव बना देना है?

हाँ, इससे ऐसा आभास तो मिलेगा, लेकिन तभी जब यह क्षेत्र काफी विस्तृत हो। और शासन चलाना असम्भव बनानेकी कोशिश तो मैं तब करूँगा जब यह देख लूँगा कि सरकारने विवेक-बुद्धिसे अपना नाता बिलकुल तोड़ लिया है।

श्री गांधी उस दिन १० अप्रैलको आप अहमदाबादमें नहीं थे?

जी नहीं।

१६–२८