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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


क्या १० तारीख को?

जी हाँ, १० को ही।

जिसे आप अकाट्य प्रमाण कहते हैं उसमें कितना बल है, यह तो सबसे अच्छी तरह आपको ही मालूम होगा। क्या यह कोई ऐसा प्रमाण है जिससे कोई साधारण व्यक्ति, साधारण जीवनमें, किसी प्रकारका निष्कर्ष निकाल सके।

जी हाँ, मैं तो समझता हूँ कि है। इसे स्वीकार करनेसे पूर्व मैंने कोई विशेष तर्कबुद्धिका उपयोग नहीं किया है। इसके विपरीत मेरा खयाल है कि ऐसे किसी प्रमाणको मैं खूब ठोक-बजाकर ही स्वीकार करूँगा।

जिन लोगोंने आपको यह जानकारी दी उन्होंने क्या सचमुच यह बात सुनी या होते देखी थी अथवा किसी औरसे सुनी थी?

मेरे पास उन भ्रमित हो जानेवालोंका भी प्रमाण है, जिनसे यह बात कही गई और कुछ ऐसे लोगोंका भी है जो यह बात जानते भी थे।

यानी उनका, जिन लोगोंने यह बात कहते सुनी?

स्वयं उनका जिनसे ऐसा करनेको कहा गया और मेरे पास कुछ ऐसे लोगोंका प्रमाण भी है जिन्होंने स्वयं ऐसा किया भी।

ऐसा बहुत बड़े पैमानेपर किया गया या कुछ छुट-पुट ढंगसे?

यह कहना तो कठिन है कि यह बड़े पैमानेपर किया गया या नहीं, एक तरहसे तो मैं यह कहनेको तैयार हूँ कि बड़े पैमानेपर किया गया। निश्चय ही, कुछ छुट-पुट मामले भी हुए। इन लोगोंने इतना ज्यादा तो नहीं किया कि एक छोरसे दूसरे छोरतक लोगोंसे ऐसा करनेको कहते फिरें, लेकिन निश्चय ही उन्होंने लोगोंकी उत्तेजनाका लाभ उठाकर उनके दिमागमें यह बात भर दी। में जो कुछ कह रहा हूँ उसके असली माने यही हैं।

आप जो कुछ कह रहे हैं वह तो असल में यह है कि १० तारीखको आपकी गिरफ्तारीका समाचार सुनकर लोग उबल पड़े?

जी हाँ।

तो क्या उससे पहले उनकी कोई योजना नहीं थी?

जी नहीं, कोई नहीं।

कुछ व्यक्तियोंने भीड़को उस तरहसे उत्तेजित देखा और देखते ही उन्होंने तुरन्त उस अवसरका लाभ उठाया और उन्हें बरगलाकर या गुमराह करके उनसे यह सब करवाया?

जी हाँ, मुझे इसमें तनिक भी सन्देह नहीं।

आपका कहना है कि इस सम्बन्धमें आपको प्रत्यक्ष प्रमाण मिले हैं?

जी हाँ, मिले हैं।

यानी ऐसे लोगों के प्रमाण जिन्होंने दूसरोंको ऐसा करते देखा या स्वयं ऐसा किया।

जी हाँ, ऐसे लोगोंका ही।