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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


आप कहते हैं, कुछ ग्रामीण लोग आपके पास आये?

जी हाँ, काफी लोग आये।

और आपने ऐसा काम करनेपर उन्हें फटकारा?

खूब आड़े हाथों लिया; पूछा कि "आपने उसे रोका क्यों नहीं? आपने अपनी आँखोंके सामने ऐसी बातें क्यों होने दी?"

और तब उन्होंने कहा कि उन्हें भड़काया गया था या दूसरे लोगोंने उनसे ऐसा करने को कहा था?

जी नहीं। उन्होंने कहा, यह सब "प्रेम" ने करवाया। उन्होंने ठीक इसी शब्दका प्रयोग किया था—प्रेमका। उन्होंने बताया कि "आपके प्रति हमारे प्रेमने यह सब करवाया।" फिर मेरे पूछनेपर उन्होंने बताया कि यह सब कैसे किया।

जहाँतक आपने बताया है, उससे तो सिर्फ यही निष्कर्ष निकलता है कि उन्होंने कहा कि यह सब उन्होंने किया और किसी दूसरे व्यक्तिने उनसे ऐसा करनेको नहीं कहा?

मैंने आपको तीन उदाहरण दिये हैं। एक तो उन लोगोंका जो इस बातको जानते थे, लेकिन जिनसे यह करनेको नहीं कहा गया; दूसरा उन लोगोंका जिन्होंने यह सब होते, यानी लोगोंको उत्तेजित करते तथा उपद्रव मचाते देखा, लेकिन स्वयं इस सबके मूक प्रेक्षक ही बने रहे; और तीसरा उन लोगोंका जिन्होंने खुद यह सब किया लेकिन दूसरोंको भड़काया नहीं। लोगोंको भड़कानेवाले किसी व्यक्तिका साक्ष्य या दोष-स्वीकृति मुझे प्राप्त नहीं हुई है।

भले ही ऐसे लोगोंकी दोष-स्वीकृति आपको प्राप्त न हो, लेकिन अगर आप कुछ लोगोंको अमुक काम करनेके लिए फटकारेंगे तो वे स्वभावतः सब चीजोंकी जिम्मेदारी दूसरेपर फेंकनेकी कोशिश करेंगे और कहेंगे कि "यह ठीक है कि मैंने यह किया, लेकिन मुझे किसी औरने यह सब करने को कहा था।"

वे ऐसा कह सकते हैं, लेकिन मेरा खयाल है, मुझे उनके ऐसा कहनेका और असलियतका भेद समझ पाना चाहिए।

तो आपने यह सब सुनकर अपने ही निष्कर्ष निकाले?

हाँ, मैं इतना ही कह सकता हूँ।

और आप अब भी अपने निष्कर्षोपर दृढ़ हैं?

जी हाँ, मैं अब भी अपने निष्कर्षोपर दृढ़ हूँ और में रोज-ब-रोज जैसे-जैसे अनुभव प्राप्त करता जा रहा हूँ, वैसे-वैसे इन निष्कर्षो में मेरा विश्वास दृढ़से दृढ़तर होता जा रहा है।

मुझे मालूम हुआ कि खेड़ाके उपद्रवों और ट्रेन उलटनेके मामलोंके बारेमें भी आपको कुछ सूचनाएँ थीं?

जी हाँ।