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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


तो आपने उसे इस आशामें जुलाई तकके लिए स्थगित कर दिया कि इस बीच जनसाधारण सत्याग्रहके असली सिद्धान्तोंकी शिक्षा प्राप्त कर लेगा और तब सविनय अवज्ञा आन्दोलन फिर प्रारम्भ करनेमें कोई खतरा नहीं रहेगा?

आंशिक रूप से यह कथन सही है। मैंने जो महसूस किया वह यह था कि अगर मैं इस चीजको दो महीने के लिए स्थगित कर दूँ तो मैं इसकी जो गलत व्याख्या की गई है और इसे जो गलत रूपमें समझा गया है उसपर काबू पा लूँगा। और में जनता तथा सरकारके सामने स्थितिको जितना स्पष्ट कर पाया हूँ या जितना स्पष्ट मैं तब कर सकता था उससे अधिक स्पष्ट कर सकूँगा।

अभी एक मिनटमें में सरकार की बात भी लूँगा। पहले मैं यह समझना चाहता हूँ। जब आपने इसे स्थगित किया तो आपका खयाल था कि लोगोंने आपके प्रचार या मतको पूरी तरह नहीं समझा है और वे तबतक सत्याग्रह तथा निश्चय ही उसके सविनय अवज्ञावाले पक्षपर, जिस तरह आप चाहते थे सचमुच उस तरह, अमल करने योग्य नहीं बन पाये हैं, और आप मानते थे कि दो महीने में वे इसके योग्य बन जायेंगे—यही न?

जी नहीं, में यह नहीं मानता था कि वे दो महीने में इसके योग्य बन जायेंगे।

इस सम्बन्धमें उस समय आपने ठीक-ठीक किन शब्दों में अपना विचार व्यक्त किया, मैं जानना चाहता हूँ।

(पढ़ते हैं) "मुझे खेद है कि जब मैंने सार्वजनिक आन्दोलन आरम्भ किया उस समय मैंने अमांगलिक शक्तियोंकी ताकतको कम कूता। इसलिए अब मुझे रुककर यह विचार करना है कि परिस्थितिका सामना भली-भाँति कैसे किया जा सकता है। परन्तु ऐसा करते हुए मैं यह कहना चाहता हूँ कि अहमदाबाद और वीरमगांवकी शोकजनक घटनाओंकी सावधानीपूर्वक जाँच करनेसे मुझे यह विश्वास हो गया है कि भीड़ द्वारा की गई हिंसासे सत्याग्रहका कोई सम्बन्ध नहीं था। उपद्रवी भीड़के झंडेके नीचे बहुत से लोग ज्यादातर इसलिए इकट्ठे हो गए कि अनसूयाबाई और मेरे ऊपर उनका अत्यन्त प्रेम है। यदि सरकार अदूरदर्शितापूर्वक दिल्लीमें प्रवेश करनेसे रोककर मुझे अपनी आज्ञाओंका उल्लंघन करनेपर बाध्य न करती तो मुझे पूरा विश्वास है कि अहमदाबाद और वीरमगाँव में गत सप्ताह जो भयंकर कांड हुए वे न होते। दूसरे शब्दोंमें इन उपद्रवोंका कारण सत्याग्रह नहीं है। इसके विपरीत सत्याग्रह तो पहले ही से मौजूद उपद्रवी तत्त्वोंको नियन्त्रित करने में—यह नियन्त्रण कितना भी कम क्यों न हो—सहायक ही हुआ है। जहाँतक पंजाबकी घटनाओंका सम्बन्ध है यह स्वीकार किया गया है कि सत्याग्रह आन्दोलन से उनका कोई सम्बन्ध नहीं है।

"दक्षिण आफ्रिकामें सत्याग्रहकी लड़ाईके दौरान कई हजार गिरमिटिया भारतीयोंने हड़ताल कर दी थी।[१] वह हड़ताल सत्याग्रहसे प्रेरित थी, इसलिए उसका स्वरूप बिलकुल ऐच्छिक और शान्तिपूर्ण रहा। जब यह हड़ताल जारी थी उसी समय यूरोपीय खान मजदूरों, रेलवे कर्मचारियों आदिने भी हड़ताल कर दी।"

  1. यह हड़ताल अक्तूबर १९१३ में हुई थी। देखिए खण्ड १२।