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आप उस अंशको लीजिए जिसमें आपने इसे दो महीनेतक स्थगित रखने के कारणकी चर्चा की है।

मैं उसीपर आ रहा हूँ।

"उस समय मुझसे अनुरोध किया गया था कि में उनके साथ हो जाऊँ। एक सत्याग्रहीकी भाँति मुझे ऐसा न करनेका निर्णय करनेमें एक क्षणकी भी देर न लगी। मैं इतना ही करके चुप नहीं रह गया, परन्तु इस डरसे कि हमारी हड़ताल भी यूरोपीयोंकी उन हड़तालोंकी श्रेणीकी ही न मान ली जाये, जिनमें कि हिंसा और शस्त्र-प्रयोगको बहुत प्रमुख स्थान प्राप्त था, हम लोगोंकी हड़ताल स्थगित कर दी गई। उस समयसे दक्षिण आफ्रिकाके गोरोंने सत्याग्रहको सम्मानास्पद और सच्चा आन्दोलन, जनरल स्मट्सके शब्दोंमें 'वैध आन्दोलन', मान लिया। इस नाजुक समयमें मैं उससे कम कोई चीज नहीं कर सकता। यदि में अपने किसी कार्यसे सत्याग्रह आन्दोलनका उपयोग हिंसाकी आग और भड़काने तथा अंग्रेज और भारतवासियोंके सम्बन्धोंको कटु बनानेके लिए होने दूँ तो में सत्याग्रहके प्रति सच्चा नहीं होऊँगा। इसलिए इस समय हमारे लिए सत्याग्रहका अर्थ यही होना चाहिए कि हम सत्याग्रही होने के नाते शान्ति स्थापित करने और गैरकानूनी कामोंको रोकनेके लिए सब तरह और अविश्रान्त भावसे अधिकारियोंको सहायता दें। यदि हम जनतासे सत्याग्रहके बुनियादी सिद्धान्तोंपर अमल कराने में समर्थ हुए तो आज जो दुःखद घटनाएँ हमारी आँखोंके सामने हो रही हैं, उनका कुछ सदुपयोग हो जायेगा।

"सत्याग्रह तो सहस्रों शाखाओंवाले बरगदके वृक्षके समान है। सविनय अवज्ञा तो उसकी एक शाखा मात्र है। सत्य और अहिंसा इस वृक्षका तना है जिसमें से सब शाखाएँ फूटती हैं। कटु अनुभवसे हमने देखा है कि अराजकताके वातावरणमें सविनय अवज्ञाको तो तुरन्त अपना लिया जाता है किन्तु सत्य और अहिंसाके प्रति कुछ भी सम्मान नहीं दिखाया जाता जब कि सच्ची सविनय अवज्ञा तो सत्य और अहिंसाकी नींव पर ही खड़ी हो सकती है। इसलिए हमारा कर्त्तव्य बहुत विकट है। परन्तु हम इससे मुख नहीं मोड़ेंगे। हमें निर्भयतासे सत्य और अहिंसाके सिद्धान्तोंका प्रचार करना चाहिए तब और केवल तभी हम लोग व्यापक रूपसे सार्वजनिक सत्याग्रह आन्दोलन कर सकेंगे। रौलट कानूनके प्रति मेरा भाव पहले जैसा ही अपरिवर्तित है। वास्तवमें मैं अन्य बहुतसे कारणों में वर्तमान अशान्तिका एक कारण रौलट कानूनको भी मानता हूँ, परन्तु इस उत्तेजनापूर्ण वातावरणमें मैं उन कारणोंपर सविस्तार विचार नहीं करूँगा। इस पत्रका प्रधान और एकमात्र उद्देश्य सभी सत्याग्रहियोंको यह सलाह देना है कि वे कुछ समयके लिए सविनय अवज्ञा स्थगित कर दें, सुव्यवस्था स्थापित करने में सरकार के साथ सक्रिय सहयोग करें तथा अपने वचन और आचरणसे [सत्याग्रहके] उपर्युक्त बुनियादी सिद्धान्तोंमें जनताकी आस्था पैदा करें।"[१]

"बहुत से लोग मुझसे पूछते हैं कि 'सत्याग्रह फिर कब शुरू होगा?' इसके दो उत्तर हैं। एक तो यह कि सत्याग्रह बन्द तो हुआ ही नहीं है। जबतक हम सत्यका

  1. देखिए खण्ड १५, पृष्ठ २५१-५२।