पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 16.pdf/४७८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४४४
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पालन करते हैं और दूसरोंको वैसा ही करनेको कहते हैं, तबतक सत्याग्रह कभी बन्द हुआ नहीं कहलायेगा। यदि सभी सत्यका पालन करें और किसीके जान-मालका नुकसान करनेसे परहेज रखें तो हम जो माँगते हैं वह तुरन्त मिल जाये। परन्तु जब सभी ऐसा करने को तैयार नहीं हैं और जब सत्याग्रही लोग मुट्ठी भर ही हैं, तब हमें सत्याग्रहके सिद्धान्तसे फलित हो सकनेवाले दूसरे उपाय ढूँढ़ने पड़ते हैं। ऐसा एक उपाय कानूनकी "सविनय अवज्ञा" है। मैंने यह पहले ही समझा दिया है कि हमने थोड़े समय के लिए सविनय अवज्ञा आन्दोलन क्यों स्थगित किया है। जबतक हम जानते हैं कि सविनय अवज्ञा आन्दोलनसे हिंसा और दंगे छिड़ जानेकी बहुत सम्भावना है, बल्कि लगभग निश्चय है, तबतक कानूनका पालन न करना सविनय अवज्ञा नहीं कहला सकता। बल्कि ऐसी अवज्ञा तो विचारहीन, विनयहीन और सत्यरहित कहलायेगी। सत्याग्रही कानूनकी ऐसी अवज्ञा कभी नहीं करेगा। इतनेपर भी सत्याग्रही अपना कर्त्तव्यपालन पूरी तरह करने लगें, तो वे सविनय अवज्ञा आन्दोलन जल्दी आरम्भ करनेमें सहायक हो सकते हैं। सत्याग्रहियोंके प्रति मेरा विश्वास मुझे यह माननेको प्रेरित करता है कि हम लगभग दो महीने में सविनय अवज्ञा आन्दोलन फिर आरम्भ करनेके योग्य हो जायेंगे। अर्थात् यदि इस बीच रौलट कानून रद न हुआ, तो हम जुलाईके आरम्भमें कानूनकी सविनय अवज्ञा शुरू कर देंगे। फिलहाल यह मीयाद तय करनेमें में नीचे लिखे कारणोंसे प्रेरित हुआ हूँ : एक तो यह कि इस अवधिमें हम अपना यह सन्देश देश-भर में फैला चुकेंगे कि जबतक सविनय अवज्ञा स्थगित है तबतक कोई भी मनुष्य सत्याग्रहकी आड़ में या सत्याग्रहकी सहायता करनेके बहाने दंगा या मारकाट न करे। आशा की जाती है कि जब लोगोंको यह विश्वास हो जायेगा कि देशका सच्चा हित-साधन इस सन्देशका पालन करनेसे ही हो सकेगा, तब वे शान्ति रखेंगे। इस प्रकार स्वेच्छापूर्वक रखी गई शान्ति भारतकी प्रगतिमें बहुत बड़ा हाथ बँटायेगी। है कि भारत इस हदतक सत्याग्रहका रहस्य न समझ सके। वैसी दशामें हिंसाको फूट निकलनेसे रोकनेकी एक और आशा है। हाँ, जिस शर्तपर यह आशा आधारित है, वह हमारे लिए बहुत ही अपमानजनक है। फिर भी इस शर्तसे भी सत्याग्रही लाभ उठा सकते हैं। इतना ही नहीं, ऐसी परिस्थितियोंमें सत्याग्रह शुरू करना सत्याग्रहियोंका फर्ज हो जाता है। इस समय जो सैनिक व्यवस्था कायम हो गई है, उससे स्वाभाविक रूपमें ही हिंसाका फूट निकलना, जो कि देशके लिए बहुत हानिकारक है, असम्भव हो गया है। हाल ही में फूट पड़नेवाले दंगे इतने अचानक हुए थे कि सरकार तुरन्त उनसे निपट सकने के लिए तैयार नहीं थी। परन्तु इन दो महीनोंमें सरकारकी तैयारी पूरी हो जानेकी आशा है। इसलिए सार्वजनिक शान्ति भंगका भय और सत्याग्रहका जान-बूझकर या अनजानेमें दुरुपयोग करना लगभग असम्भव हो जायेगा। ऐसी परिस्थितिमें सत्याग्रही दंगोंके किसी डरके बिना सविनय अवज्ञा कर सकते हैं और ऐसा करके यह दिखा सकते है कि हिंसासे नहीं बल्कि केवल सत्याग्रहसे ही न्याय प्राप्त किया जा सकता है।"[१]

  1. देखिए खण्ड १५, पृष्ठ २७४-७५।