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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कि चम्पारनके गरीब किसानोंमें और बिहारकी सरकारमें भी किसी हदतक जो जाग्रति हुई, उसकी बुनियाद मेरी इस सविनय अवज्ञासे ही पड़ी है। जिस सिद्धान्तको मैं पिछले चालीस वर्षसे बहुत मूल्यवान मानता रहा हूँ और गत तीस वर्षसे अपने जीवनमें काफी सफलताके साथ सोच-समझकर जिसका प्रयोग करता रहा हूँ, उसे मैं कैसे छोड़ दूँ?

परन्तु आप पिछली अप्रैलके दर्दनाक अनुभव उद्धृत करके यह बात कह रहे हैं। क्या आपने वास्तवमें परिस्थितिका अच्छी तरह विश्लेषण कर लिया है? ६ अप्रैलका दिन कन्याकुमारीसे पेशावरतक और कराचीसे कलकत्तेतक करोड़ों स्त्री-पुरुषों और बच्चों द्वारा मनाया गया था। इस जैसी घटना हमारी याददाश्तमें तो कभी नहीं हुई। उस दिन पेशावरमें क्या हुआ, यह मैं नहीं जानता। परन्तु मुझे मालूम है कि हिन्दुस्तान के सभी बड़े-बड़े शहरों और लाखों गाँवोंमें वह दिन शान्तिसे गुजरा और मेरा कहना है कि यह बात बड़ी स्पष्टताके साथ सिद्ध करती है कि सविनय अवज्ञाकी सम्भावनाएँ कितनी हैं। ६ अप्रैलको असलमें कहीं भी सविनय अवज्ञा नहीं की गई, वह दिन तो तैयारीका था। दुनियाकी अन्य कोई भी सरकार होती तो इस नये बलको मान्यता देती और इसके सामने साहसपूर्वक सिर नवाकर इन सबकी जड़ रौलट कानूनको रद कर देती। परन्तु पंजाब सरकार तो पागल हो गई है। उसने भारत सरकारसे अपनी जिद पूरी कराकर छोड़ी। इस प्रकार क्रूर दमन नीति शुरू हुई। दो नेताओंको नजरबन्द करके निर्वासित कर दिया गया। वे जानते थे कि मैं दिल्ली और जरूरी हुआ तो वहाँसे पंजाब शान्ति कार्यके लिए जा रहा था। फिर भी मुझे वहाँ जानेसे रोक दिया गया और मैं गिरफ्तार कर लिया गया। नजरबन्दीमें ही मुझे बम्बई लाकर छोड़ दिया गया।[१] उसके बाद विस्फोट हुआ। मैं यह कहना चाहता हूँ कि पंजाब सरकारने जान-बूझकर और द्वेषपूर्वक पंजाबमें बलवा करानेकी योजना बनाई होती, तो वह भी इससे ज्यादा कारगर कदम नहीं हो सकता था। फिर भी सत्याग्रहका बल देखिए कि पंजाब और गुजरातके तीन स्थानोंको छोड़कर बाकी सारा हिन्दुस्तान इतनी गम्भीर उत्तेजना होते हुए भी काफी शान्त बना रहा। मैंने अपनी भूल स्वीकार कर ली है। थी क्या मेरी भूल? मेरी भूल इतनी ही थी कि मैंने दुःख और कष्ट सहन करनेकी लोगोंकी क्षमताके बारेमें गलत हिसाब लगाया था। पंजाबके नेताओंकी गिरफ्तारी से उत्पन्न उत्तेजनाके बावजूद पंजाबके लोगोंका शान्त बने रहना सम्भव था। किन्तु जो कुछ भी हुआ वह उनकी सहन-शक्ति से बाहर था। अमृतसरके लोग अपने-आपपर काबू न रख सके। अपने नेताओंका देश निकाला वे बर्दाश्त न कर सके। उसके बाद जो कुछ हुआ, उसमें किसका कितना दोष था, इसका निबटारा आप या मैं नहीं कर सकते। सत्याग्रहका सवाल एक तरफ रखकर हमें इस प्रश्नका निराकरण करना पड़ेगा कि क्या सेनाके गोली चलानेसे लोग पागल बने या भीड़के दंगों से सेनाको मजबूर होकर गोली चलानी पड़ी?

  1. गांधीजीको अप्रैल ९ को दिल्लीके पास गिरफ्तार किया गया था और दूसरे दिन बम्बई लाकर छोड़ दिया गया था।