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पत्र : अब्दुल अज़ीज़को

खैर, जो कुछ हुआ, सो हुआ परन्तु देशके कुछ भागोंमें विशेष कारणोंसे लोगोंने पिछले अप्रैल मासमें हिंसाका प्रयोग किया इस आधारपर में सविनय अवज्ञा फिरसे शुरू करनेका विचार स्थायी रूपसे कैसे छोड़ सकता हूँ? सम्भव है, कुछ लोग उसी वक्त दुष्कृत्य करने लगें तो क्या मैं सत्कृत्य करना छोड़ दूंगा? मैं मानता हूँ कि यह सवाल इतना सरल नहीं है, जैसा मैंने पेश किया है। हरएक कार्यके पीछे विविध प्रकारकी कुछ जटिल परिस्थितियाँ होती हैं, जिनमें से कुछ तो कर्त्ताके वशमें होती हैं। और कुछ वशके बाहर; इसलिए कर्त्ता तो इतना ही कर सकता है कि आसपासकी परिस्थितियोंपर अधिक से अधिक काबू पानेतक खुद कोई कदम न उठाये और फिर भगवानपर भरोसा रखकर अपना कदम उठाये। सविनय अवज्ञा मुल्तवी करके मैंने ठीक ऐसा ही किया है। मैंने दिखाया है कि सविनय अवज्ञा अपराधपूर्ण अवज्ञासे बिलकुल उलटी है। सविनय अवज्ञा सरकारके साथ सहयोग और आदरकी वृत्तिके साथ पूरी तरह सुसंगत है।

मेरे खयालसे आप पेशावरका उदाहरण इसलिए दे रहे हैं कि लोगोंने विचार किये बिना अथवा शरारती लोगोंके पीछे लगकर ६ अप्रैलके कार्यक्रममें भाग लिया। शायद उन्होंने वैसा ही किया हो, जैसा आप कहते हैं। परन्तु जो घटनाएँ हुई हैं, उनका मैं आपसे भिन्न अर्थ ही लगाता हूँ। रौलट कानून न बनाया गया होता, तो किसी भी किस्मके प्रदर्शन न होते और शरारती लोगोंको मौका नहीं मिलता। इन प्रदर्शनों अथवा सविनय अवज्ञाका संगठन करनेमें कोई गलत बात नहीं थी, गलत बात तो यह थी कि सरकारने लोकमतको इस हदतक ठुकराया कि उसके फलस्वरूप एक इतना बड़ा आन्दोलन उठ खड़ा हुआ जिसकी सरकारने कल्पनातक नहीं की थी।

इससे जो सार निकलता है वह तो स्पष्ट ही है। सार यह है कि सरकारको लोकमत के आगे झुकना चाहिए और अपना कदम पीछे हटा लेना चाहिए। यह मान भी लें कि रौलट कानून द्वारा दिये गये अधिकार जरूरी हैं, तो भी सरकारको इसके लिए धीरजके साथ लोकमत तैयार करना चाहिए और ऐसे उपाय अख्तियार करने चाहिए और उतने ही अधिकार लेने चाहिए, जिन्हें प्रबुद्ध लोकमत स्वीकार कर ले। यहाँ तो सरकारने अपने मित्रोंकी सलाहकी उपेक्षा की है और ऐसा करके महत्त्वके मामलों में सरकारपर असर डालनेमें उनकी असमर्थता सिद्ध करके उन्हें हँसीका पात्र बना दिया है। मेरी विनम्र राय यह है कि आप और आपकी तरह दूसरे नेतागण मुझे खुली या खानगी चिट्ठियाँ लिखनेके बजाय सरकारको लिखें। और उससे अपनी भूलें सुधारनेको कहें। मुझे अपने कर्त्तव्य पथ से विचलित होनेके लिए कहना अनुचित है। मैं आशा रखता हूँ कि आप इसपर तो मुझसे सहमत होंगे कि जिन रौलट कानूनोंके प्रति इतना विरोध जागा है और जिनके कारण इतना खून बहा है, वे रद होने चाहिए। इसके लिए सविनय अवज्ञाके सिवा और कोई उपाय आपके पास हों, तो आपको अवश्य आजमाने चाहिए और यदि उसमें आपको सफलता मिले तो अपने- आप सविनय अवज्ञाके लिए कोई गुंजाइश नहीं रहेगी। इस स्थगन - कालमें आपको

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