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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


इसके बाद आप अपनी यह आशंका व्यक्त करते हैं कि हो सकता है, जैसा अभी आपने स्पष्ट किया है, लोग उस ढंगसे उसके योग्य न हो पायें, लेकिन उस हालत में भी सविनय अवज्ञा पुनः प्रारम्भ करनेसे कोई हानि नहीं होगी क्योंकि तबतक सैन्य-व्यवस्था इतनी अच्छी तरह सम्पन्न कर दी जायेगी कि हर प्रकारकी हिंसात्मक कार्रवाईका सफलतापूर्वक सामना किया जा सकेगा; और इसलिए जैसा कि आप चाहते हैं उस ढंगसे लोग सविनय अवज्ञाके योग्य न भी हो पाये हों तब भी आप इसे पुनः प्रारम्भ कर देनेकी वकालत करते हैं—यही न?

जी हाँ, बेशक।

लेकिन जरा ध्यान दीजिए कि उसका मतलब क्या होता है। उस हालतमें तो सिर्फ इसलिए कि कुछ लोग कतिपय कानूनोंको तोड़नेका आनन्द उठायें और किसी प्रकारकी हिंसा न होने पाये, अतः देशके सभी हिस्सोंमें या कमसे कम कुछ हिस्सोंमें सेनाको तैयार करना पड़ेगा? क्या उसका मतलब यही नहीं है?

मतलब जो लगा लें, लेकिन इस पत्रकी ऐसी व्याख्या करनेकी कोई जरूरत नहीं दिखाई देती है। मेरा वैसा कोई मतलब भी नहीं था। मैं तो सिर्फ यह कहता हूँ कि मैं सैन्य-व्यवस्था होते देख रहा हूँ। और उस चीजका लाभ उठानेका मुझे हर अधिकार प्राप्त है।

आप जरा पत्रको दुबारा पढ़नेकी कृपा करेंगे। उसमें आप दो कारण देते हैं—दो परिस्थितियाँ जिनके आधारपर आप फिर १ जुलाईको आन्दोलन प्रारम्भ करनेकी आशा करते हैं। एक तो आपकी यह आशा है कि लोग इसके योग्य हो जायेंगे और इस प्रकार हिंसाको सम्भावना नहीं रह जायेगी; और दूसरे यह कि अगर वे इसके लिए इतने योग्य न भी हो पायें और हिंसा करनेको पहलेकी तरह ही तत्पर रहें तब भी देशमें जो सैन्य व्यवस्था की जा रही है वह दो महीने में इतनी पूर्ण हो जायेगी कि अगर इस ढंगसे सत्याग्रहके योग्य न हो पाये लोगोंने किसी तरह हिंसाका सहारा लिया भी तो उससे अमन और कानूनको कोई बड़ी हानि नहीं हो पायेगी, क्योंकि उनपर अंकुश रखने के लिए सैन्य व्यवस्था तो रहेगी हो?

लेकिन यह तो इस बात से बिलकुल भिन्न है कि मैंने सैन्य-व्यवस्थाको पूरी तरह दुरुस्त रखने की कामना की।

लेकिन आपके कहने का मतलब तो यही है। मैंने यह तो नहीं कहा कि आपने ऐसी कामना की?

तब आपका कहना ठीक है।

चाहे आप इसकी कामना करें या न करें, लेकिन वास्तवमें आप कहते हैं कि दो महीने में सैन्य व्यवस्था इतनी पूरी हो जायेगी कि तब आप लोगोंके बिलकुल उसके योग्य न हो पानेपर भी, बिना किसी अव्यवस्थाकी आशंकाके, सविनय अवज्ञा पुनः प्रारम्भ कर सकेंगे, क्योंकि उस हालतमें किसी बड़ी क्षति या हिंसाकी सम्भावना न होगी—इसलिए कि उसका सामना करनेके लिए सेना तैयार रहेगी।

मेरा मतलब यही था।