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उपद्रव जाँच समितिके सामने गवाही


में जो कुछ कह रहा हूँ, आप उसपर तनिक ध्यान दें और देखें कि उसका क्या मतलब है। उसका मतलब यह मान लेना है कि अगर लोग दो महीनेके भीतर इसके लिए इतने अधिक योग्य नहीं हो पाये तो सरकार देशके विभिन्न हिस्सोंमें इस प्रकारकी सैन्य-व्यवस्था कर रखे ताकि जिन लोगोंने प्रतिज्ञा ले रखी है, उन थोड़ेसे लोगोंको और थोड़े-से लोगोंको ही—कानून तोड़नेका कुछ आनन्द प्राप्त हो सके। इससे आगे इसका मतलब होता है महज इस खयालसे कि प्रतिज्ञा लेनेवाले ये थोड़े-से लोग समाजको कोई गम्भीर क्षति पहुँचाये बिना कुछ कानूनोंको तोड़ सकें, काफी खर्च उठाकर भी इस तरहसे जगह-जगहपर सैनिक टुकड़ियाँ रखी जायें और इस सबका खर्च उस निरीह जनसाधारणको भरना पड़े जिसका इससे कोई सम्बन्ध नहीं है। इसका परिणाम तो यही होगा?

यह परिणाम तभी निकलेगा जब सत्याग्रहीं होने का दावा करनेवाला आदमी सचमुच बुद्धि-विवेकको नमस्कार कर ले। अन्यथा यह परिणाम नहीं निकल सकता।

आपने तो खुद यह आशंका व्यक्त की है कि सम्भव है दो महीनेमें लोग इतने योग्य न हो पायें कि वे हिंसासे अलग रहें। लेकिन तब भी १ जुलाईको अनाक्रामक सविनय अवज्ञा प्रारम्भ कर दी जायेगी या कर दी जानी चाहिए, क्योंकि अगर लोगों में हिंसाकी प्रवृत्ति होगी भी तो उन्हें उस प्रभावकारी सैन्य-व्यवस्थाके बलपर हिंसा करनेसे रोक दिया जायेगा?

बिलकुल सही है। लेकिन यहाँ तो मैं एक ऐसी परिस्थितिका लाभ उठा रहा हूँ जो, मैं चाहे कुछ करूँ, मेरे सामने स्वयं ही प्रस्तुत हो रही हैं। लेकिन में समझता हूँ, अगर में स्थितिको स्पष्ट किये दे रहा हूँ तो, इसके बाद इस सम्बन्धमें कोई सवाल पूछनेकी जरूरत नहीं रह जायेगी। सत्याग्रहीकी हैसियतसे मैं कभी नहीं कहूँगा, मैं ऐसा कोई काम करनेका अपराध नहीं करूँगा, कि सिर्फ इसलिए कि मैं मुट्ठी भर लोगोंके साथ कानूनोंको तोड़ता रहूँ, सरकारको देशपर सैन्य बल थोपना पड़े। लेकिन तब मैं यह समझँगा कि इस सिद्धान्तको ग्रहण करने के लिए अभी वातावरण ठीकसे तैयार नहीं हो पाया है और इसलिए मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए।

तो मैं मान लेता हूँ कि आपने जो कुछ कहा उसमें इस हदतक सुधार कर दिया?

जी हाँ, सुधार तो कर दिया है। मैंने १ जुलाईको आन्दोलन फिरसे प्रारम्भ करने का विचार किया था लेकिन शुरू नहीं किया। और इस बातसे मेरे साथी कार्यकर्त्ताओंको, जिनका इस २ मईके पत्रमें भी हाथ था, बहुत निराशा भी हुई। मैंने आन्दोलन इसलिए शुरू नहीं किया क्योंकि गवर्नर जनरल महोदय तथा बम्बईके गवर्नर महोदयको ऐसा लगा कि मेरे पास पर्याप्त आँकड़े नहीं हैं और यह बात उन्होंने मुझसे इस प्रकार कही : "क्या आप भारतको सैन्य शिविर बना देना चाहते हैं?" मैंने कहा, नहीं। "अगर नहीं तो फिर आप सत्याग्रह स्थगित क्यों नहीं कर देते?" इसपर मैंने इसे स्थगित कर दिया।