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उपद्रव जाँच समिति के सामने गवाही

गये कि जब मैंने उनसे अपराध स्वीकार करने को कहा तो उन्होंने मेरी एक न सुनी। हाँ, इस बार मैं उनसे खुद नहीं मिला था, लेकिन मेरे एक साथी कार्यकर्त्ता श्री वल्लभभाई पटेलने उनसे मिलकर उन्हें समझानेकी कोशिश की। उन्होंने मुझसे सन्देश लिया, खुद उन लोगोंसे मिले लेकिन सफल नहीं हो पाये।

मेरा खयाल है, आप मेरे इस विचारसे सहमत होंगे कि अगर सर्वसाधारण के मनसे कानूनके प्रति सम्मानका भाव दूर कर दिया जाता है तो यह एक बहुत ही बुरी स्थिति होगी, चाहे कानून कितने ही अच्छे या बुरे या अच्छाई-बुराईसे परे हों?

मैं यह नहीं कहूँगा। अमन और कानूनके प्रति सम्मान-भावका मतलब होता है ऐसे अमन और कानूनके प्रति सम्मान भाव जिससे राष्ट्रका हित साधन होता हो; लेकिन इसमें लोगोंकी ओरसे अपने विवेकके उपयोगकी बात निहित है। लोग कानूनकी सत्ता मानने से इनकार करेंगे; और युगोंसे इनकार करते आये हैं। उस सवालके जरिये मैं जिस बात की ओर ध्यान देना चाहता था वह यह थी कि क्या उन्हें कानूनकी सत्ता माननेसे आगे भी उसी ढंगसे इनकार करते जाना चाहिए जिस ढंगसे वे आजतक इनकार करते आये हैं, यानी कि या तो वे चोरी-छिपे कानून तोड़ें और अगर गिरफ्तार हो जायें तो हर तरह से अपना बचाव करें या वे छिपे तौरपर अथवा खुले तौरपर हिंसाका सहारा लें, हालांकि इनमें से शायद किसी भी बातसे समाजका कल्याण नहीं हो सकता।

मेरे कहने का मतलब यह है कि परिस्थितियोंका खयाल रखते हुए तत्कालीन सरकारके कानून एक प्रकारसे अनुल्लंघनीय हो जाते हैं?

मेरे विचारसे तो ऐसा नहीं है।

मैं यह तो नहीं कहता कि वस्तुस्थितिको इस दृष्टिकोणसे दार्शनिक लोग देखते हैं?

मैं तो इसको व्यावहारिक व्यक्तिके दृष्टिकोण से देखता हूँ।

तो क्या यह सर्वसाधारणपर सबसे अच्छा अंकुश नहीं है?

जी नहीं, आँख मूँदकर कानूनका पालन करना ऐसा कोई अंकुश नहीं है। इसका कारण यह है कि या तो वे आँख मूँदकर इसका पालन करते हैं या हिंसात्मक कार्रवाई करते हैं। दोनों ही स्थितियाँ अवांछनीय हैं।

मतलब कि जबतक प्रत्येक व्यक्ति स्वयं निर्णय लेनेके योग्य नहीं बन जाता तबतक उसे किसी-न-किसीका अनुसरण करना है?

निःसन्देह, उसे ऐसा करना है। बिलकुल स्पष्ट है कि सर्वसाधारणको अपने नेता चुनने पड़ेंगे।

मान लीजिए आपके अपने ही मन्त्री कोई कानून पास करते हैं, तो क्या हर किसीको उस कानूनको तोड़ने की छूट होगी?

आपने यह फरमाया कि सर्वसाधारणको इसकी छूट होगी या नहीं? मेरा तो खयाल है कि जब भारतमें उसके अपने ही मन्त्री होंगे तब सर्वसाधारणको कानून तोड़नेकी ज्यादा छूट रहेगी, क्योंकि अंग्रेज मन्त्रियोंके पक्षमें इतनी बात तो हो सकती