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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है कि वे वस्तुस्थितिसे अनभिज्ञ हैं, जबकि हमारे अपने मन्त्रियोंके पास कोई ऐसा बहाना नहीं होगा।

क्या इसका उपाय यह नहीं है कि उन मन्त्रियोंको ही निकाल दिया जाये, लेकिन कानून न तोड़ा जाये?

जो देश सबसे अधिक जनतांत्रिक हैं वहाँ भी मैं ऐसे मन्त्रियोंको जानता हूँ जिन्होंने किसी-न-किसी तरहसे अपनी स्थिति ऐसी बना ली है कि उन्हें हटाया नहीं जा सकता। इस हालतमें प्रतिष्ठित होते हुए भी बेचारे अल्पमत के लोग क्या कर सकते हैं? यह अल्मपत दृढ़तापूर्वक सविनय प्रतिरोध करके बड़ेसे-बड़े मन्त्रीको पदच्युत कर देगा और मुझे ऐसा आभास होता है कि भारतमें ऐसी स्थिति आयेगी।

आपको तकलीफ तो होगी लेकिन कहूँगा कि आपकी यह बात में समझ नहीं पाया। मान लीजिए आपका अपना ही मन्त्री, आपकी अपनी प्रतिनिधि सरकार कोई कानून पास करती है और चूँकि यह कानून ऐसा मन्त्री या ऐसी सरकार पास करती है इसलिए इस कानूनका अच्छा होना निश्चित है। क्या आपका मतलब यह है कि उस स्थितिमें भी आपके सत्याग्रह सिद्धान्तके अधीन किसी जन-संगठनके लोगोंको उन कानूनोंको तोड़नेकी सीख देने और स्वयं उन्हें तोड़नेकी छूट होगी? या इसका उपचार उन मन्त्रियोंको निकाल देना है?

कोई सत्याग्रही तो इसके लिए हर सम्भव उपायको आजमायेगा, लेकिन मैंने तो आपको केवल एक जनतन्त्र के अन्तर्गत किसी मन्त्रीके अपने-आपको अपरिहार्य बना लेनेका उदाहरण-भर दिया था और वह अपने को इस तरह अपरिहार्य बनायेगा कि वह, जिन लोगोंकी अन्तरात्मा जागरूक है, उनकी बात ही नहीं सुनेगा। तब फिर वे लोग क्या करेंगे जिनकी अन्तरात्मा जागरूक है? यद्यपि यह उनका घरेलू और अपनी ही सरकारका मामला है, फिर भी उन्हें न केवल ऐसा करनेकी छूट होगी, बल्कि सत्याग्रहियोंके एक संगठनका यह कर्त्तव्य हो जायेगा कि वह सविनय अवज्ञा करे। लेकिन जब ये लोग मन्त्रीको निकाल सकते हों तब तो स्वभावतः इन्हें ऐसा करने देना होगा। अगर में लॉर्ड चेम्सफोर्डको निकाल सकता तो कहता कि "लॉर्ड चेम्सफोर्ड, अगर आप रौलट अधिनियमको नहीं हटा सकते तो खुद ही हट जाइए," और फिर मैं इंग्लैंडसे कोई और वाइसराय बुलवाता।

मेरा खयाल है कि आप गवाही देने बम्बई नहीं जा रहे हैं?

क्या समिति यहाँ दोनों जगहोंसे सम्बन्धित प्रश्न करना चाहती है? में गवाही देने बम्बई तो नहीं जा रहा हूँ।

मैं आपसे बम्बईके सम्बन्धमें एक बात पूछना चाहता हूँ जिसे आपने अपनी आँखोंसे देखा था।

हाँ, हाँ, एक क्यों, बम्बईके बारेमें जो-कुछ पूछना हो, सब पूछें। अगर समिति इस सम्बन्धमें मुझे बम्बईसे बाहर भी कहीं चलने को कहे तो मैं उसके लिए भी तैयार हूँ।