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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


क्या आप भीड़को शान्त कर सके?

मेरा खयाल है, भीड़ खुद ही बहुत शान्त थी।

अगर ऐसा है तब तो यह कोशिश बेकार गई?

में नहीं समझता कि भीड़को संयत करनेकी मेरी कोशिश बेकार गई। भीड़ उस सड़क से गुजरनेका आग्रह कर रही थी, और उसका रास्ता सेना या पुलिस, जिस विभागके भी अधिकारी थे, रोक रहे थे। मैं गाड़ीमें आगे ही अनसूयाबेनके साथ बैठा हुआ लोगोंको समझा-बुझा रहा था। मैं लोगोंके इतना निकट था कि वे मेरी बात साफ सुन सकते थे। मैं उनसे उस गलीसे जानेको कह रहा था जो पुलिसने बताई थी और वे लोग भी उधरको मुड़ रहे थे। इस बीच पुलिसने नाकेबन्दी तोड़ दी थी और परिणामतः भीड़का एक हिस्सा उस ओरको भी बढ़ रहा था। लेकिन मेरे कहनेका मतलब यह नहीं है कि पुलिसने नाकेबन्दी इसलिए तोड़ी थी कि वह ऐसा करना चाहती थी। मेरा खयाल है, दरअसल पुलिसके लोगोंपर भीड़का दबाव इतना बढ़ गया था कि उन्हें नाकेबन्दी तोड़ देनी पड़ी। इसी समय एकाएक घुड़सवार सैनिक या घुड़सवार लोग भीड़पर चढ़ आये।

लेकिन ऐसा कहा जाता है कि श्री गांधीको रोक लिया गया, भीड़ बहुत क्रुद्ध थी और पुलिस अधिकारियोंने घुड़सवार सैनिकोंको जमे हुए देखकर अपने विवेकका उपयोग किया और श्री गांधीको जाने दिया?

मुझे जाने दिया? मैं नहीं जानता उन्होंने क्या किया, लेकिन निश्चय ही में वहांसे गुजरा जरूर। गाड़ी एक मिनटके लिए भी नहीं रुकी।

और जब घुड़सवार सैनिकोंने उत्तेजित भीड़को देखा तो वे उसपर चढ़ आये?

वे भोड़पर चढ़ अवश्य आये लेकिन मैंने जिस स्थानका जिक्र किया उसी स्थानपर।

क्या आपने इस बातकी किसीसे शिकायत की?

जी हाँ, की।

आपके विचारमें क्या वह कार्रवाई उचित थी?

एक तमाशबीन की हैसियतसे तो मेरा विचार यह है कि इस कार्रवाईको टाला जा सकता था। भीड़पर चढ़ आना उनके लिए जरूरी नहीं था, क्योंकि वह दूसरी दिशाकी ओर मुड़ रही थी।

आपकी जानपर भी खतरा था और आपको अपनी गाड़ी छोड़नी पड़ी?

जी नहीं।

यहाँ तो कहा गया है कि "यह बड़ी दिलचस्प बात है कि जब कि गांधी सभाओंमें भाषण देते समय बराबर एक आकर्षक रुग्ण व्यक्तिके रंग-ढंग अपनाते रहे हैं, लेकिन इस अवसरपर जो व्यक्ति सशस्त्र पुलिसकी कमान संभाले हुए था उसका कहना है कि जब घुड़सवार सैनिक धावा बोल रहे थे उस समय गांधीने बचनेके लिए अपनी गाड़ीसे निकल भागने में आश्चर्यजनक चुस्ती और फुर्ती दिखाई।"

जो भी हो यह बात सच्ची नहीं है।