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उपद्रव जाँच समिति के सामने गवाही


१० तारीखको शामकी इस योजनाबद्ध कार्रवाईके सम्बन्धमें आपके पास जो भी जानकारी थी, वह आप दे चुके हैं और साथ ही सैनिक कानून के आदेशोंके अधीन जो गोलियाँ चलाई गई उनके बारेमें भी। आपने कहा है कि आपके विचारसे इसमें कुछ निर्दोष लोग भी गोलियोंसे घायल हुए या मारे गए। क्या मैं यह मान लूँ कि आपके अनुसार ये दोनों ही तथ्य समान रूपसे विश्वसनीय हैं?

मेरा तो खयाल है कि आप ऐसा मान सकते हैं।

आप उस गवाहीपर भी उसी तरह विश्वास करते हैं जिस तरह षड्यंत्र और योजनासे सम्बन्धित गवाहीपर करते हैं?

जी हाँ, मेरा तो यही खयाल है।

आप दो प्रकारकी परिस्थितियों में कोई भेद नहीं करते?

जी नहीं।

सरदार साहबजादा सुलतान अहमदखाँके प्रश्नोंके उत्तर में

श्री गांधी, में आपसे कुछ प्रश्न पूछना चाहता हूँ। हम एक बार फिर जरा रौलट अधिनियम की बात लें। आपको निस्सन्देह यह बात मालूम है कि युद्धसे पूर्व भारत में काफी अराजकतावादी अपराध किये जा रहे थे?

मैं यह तो नहीं कहूँगा कि भारतमें काफी अराजकतावादी अपराध किये जा रहे थे।

लेकिन इतना तो होता ही था कि बंगालमें सरकारका भय न रखनेवाले लोग डकैतियाँ और खून-खराबी करते थे। दिल्ली में वाइसरायपर एक बार बम भी तो फेंका गया था?

जी हाँ, फेंका गया था।

और बंगालमें इस सम्बन्धमें बहुत-से मुकदमे चलाये गये थे?

जी हाँ, यह भी हुआ था।

और इन्हीं वारदातोंके कारण तथा देशमें शान्ति सुव्यवस्था कायम रखनेके उद्देश्यसे तीन न्यायाधीशोंका एक आयोग नियुक्त किया गया था जिसके अध्यक्ष न्यायमूर्ति श्री रौलट थे?

जी हाँ।

उन्होंने बहुत ध्यानसे इस सवालकी जाँच की और सारे मामलेकी बहुत सावधानी के साथ छीनबीन करनेके बाद उन्होंने सरकारके सामने एक रिपोर्ट पेश की और उस रिपोर्टमें, मेरा खयाल है, उन्होंने कुछ खास ढंगके कानून बनानेके लिए कुछ सिफारिशें कीं। मैंने सुना है, आपने कहा कि आप उस रिपोर्टके निष्कर्षो से सहमत नहीं हैं?

जी हाँ, मैंने ऐसा कहा है।

उस कानूनसे सहमत न होनेके लिए आपके पास क्या आधार हैं?

यह कि रौलट कमेटी की रिपोर्टमें दिये गये तथ्य ऐसे नहीं थे जिनसे मैं सहज ही इस निष्कर्षपर पहुँच जाता कि ऐसे किसी कानूनकी कोई जरूरत है। इस