पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 16.pdf/४९९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४६५
उपद्रव जाँच समिति के सामने गवाही


आप निश्चय ही यह तो स्वीकार करेंगे कि अभी मानव-स्वभाव ऐसा है कि सरकारको, जिसके लिए शान्ति सुव्यवस्था कायम रखना आवश्यक है, दमनकारी कानून बनाने ही पड़ते हैं, चाहे यह चीज उसको इच्छाके कितनी भी विरुद्ध हो?

अवश्य। और इसलिए जिस तरह मेरा जीवन गढ़ा गया है उसके अनुसार मैं केवल यही कहूँगा कि मैं ऐसे किसी भी उपायकी परीक्षा करने और उसकी आलोचना करने को तैयार हूँ जो सरकार पेश करे। लेकिन मेरे लिए यह कहना सम्भव नहीं है कि सरकारको कौनसे उपाय अपनाने चाहिए, क्योंकि यह सवाल सामने आते ही मेरा दिमाग अपराधियोंको सजा देनेकी ओर नहीं बल्कि उन्हें सुधारने की ओर चलने लगेगा। अगर मुझे उसके लिए कोई कानून बनाना होगा तो वह उसी ढंगका होगा, लेकिन मैं किसी सरकारके दमनकारी उपाय अपनाने के अधिकारसे इनकार नहीं कर सकता।

जब आप सरकार के दमनकारी उपाय अपनानेके अधिकारको स्वीकार करते हैं और सरकारने जो उपाय विशेष अपनाये हैं उनकी आलोचना करते हैं तो निश्चय ही मुझे यह पूछनेका हक है कि आपके विचारसे सरकारको परिस्थितियोंका सामना करने के लिए कौनसा दमनकारी कानून बनाना चाहिए था?

इसका उत्तर देना मेरे लिए बहुत कठिन है। मैं तो इसका निषेधात्मक उत्तर ही दे सकता हूँ। निश्चय ही में रौलट अधिनियम नहीं बनाऊँगा, और में इसके कारण भी बता सकता हूँ। वाइसरायको रौलट अधिनियमके बिना भी इतने अधिकार प्राप्त हैं कि विधान संहितामें कोई ऐसा कानून दाखिल करके उसे निरूपित करने की कोई जरूरत नहीं है। अगर कोई ऐसा व्यक्ति जो कभी भारतमें न रहा हो, विधान संहिताको खोलकर रौलट कानूनको देखे तो उसका सहज निष्कर्ष यही होगा कि भारतमें निश्चय ही अराजकताका साम्राज्य है। और में क्षण-भरको भी यह नहीं मानता कि भारतमें अराजकताका साम्राज्य है। इसलिए मेरा विश्वास है कि वाइसरायको जो अधिकार प्राप्त हैं वे अराजकताको दूर करनेके लिए पर्याप्त हैं, और अगर वाइसराय उस अधिकारका उपयोग नहीं करते और दूसरे अधिकार प्राप्त करते हैं तो मेरा खयाल है, उनका यह काम गलत है। उन्हें आपत्कालीन कानून बनानेका अधिकार है और मेरा खयाल है कि यही करना सही है।

आपका मतलब है कि वे अध्यादेशोंके सहारे ऐसा करें?

जी हाँ, मेरा खयाल है उनका ऐसा करना उचित होगा। मैं यह क्यों मानता हूँ उसके कारण भी बताऊँगा, क्योंकि मैंने इस बातपर लोगोंसे पूरी तरह विचार-विमर्श किया है और मैंने इस विचारमें कई रातें बिताई हैं कि लॉर्ड चेम्सफोर्ड-जैसे समझदार व्यक्ति इस जालमें कैसे फँस गये। उन्हें यह आपत्कालीन कानून बनानेका अधिकार प्राप्त है; वे इन अधिकारोंका उपयोग कर सकते थे और बिना किसी संकोच-विकोचके कर सकते थे तथा उन्हें इसके लिए विधान परिषद्का सहारा लेनेकी भी जरूरत नहीं थी। पहले तो उन्हें जरूरत के मुताबिक कोई जिम्मेदारी भरा कदम उठाना है और बादमें विधान परिषद् या देशके सामने या देशमें आज जैसा भी जनमत है उसके सामने उसका औचित्य सिद्ध करना है, न कि घटनाओंकी पूर्व-कल्पना करके ऐसे किसी

१६–३०