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क्या आप यह कह रहे हैं कि जो लोग हाई स्कूलोंसे निकल चुके हैं उनमें आगे कुछ सीखनेके लिए पर्याप्त धैर्य होता है, लेकिन जब आप उन्हें सही रास्तेपर लानेकी कोशिश करने लगते हैं तो आपके धैर्यकी परीक्षा हो जाती है?

मेरा खयाल है कि आज भारतमें शिक्षा-पद्धतिकी नींव ही इतनी कमजोर है कि कोई आदमी शिक्षा समाप्त कर लेनेपर भी सन्तुलनका पाठ नहीं सीख पाता। दरअसल भारतमें इतने उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्ति हैं ही नहीं कि किसी व्यापक निष्कर्षपर पहुँचा जा सके, और इसलिए मुझे इस सम्बन्धमें कोई निश्चित निष्कर्ष निकालते हुए भय नहीं लगता, क्योंकि मेरे पास काफी तथ्य मौजूद हैं, मेरे साथ काम करनेवाले काफी लोग हैं और ऐसे लोग भी काफी हैं जिनका निर्देशन मुझे करना होता है। और इसलिए मैं इस निष्कर्षपर पहुँचा कि हमारी शिक्षा-पद्धति भीतरसे सड़ी हुई है और इसे पूरी तरह दुरुस्त करने की जरूरत है।

मैं उस शिक्षा-पद्धतिके बड़े-बड़े दोषोंके बारेमें जानना चाहता हूँ।

एक दोष तो यह है कि स्कूलमें कोई वास्तविक नैतिक या धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाती। दूसरा दोष यह है कि चूंकि शिक्षाका माध्यम अंग्रेजी है, और उसे सीखनेमें नौजवानोंकी बौद्धिक क्षमतापर इतना अधिक बोझ पड़ता है, इसलिए उन्हें स्कूल में जिन अत्यन्त उदात्त विचारोंकी शिक्षा दी जाती है उन्हें वे ग्रहण ही नहीं कर पाते हैं। उनमें से होशियारसे-होशियारको भी तोतेकी तरह रटाया ही जाता है।

फिर बदलेमें आप क्या व्यवस्था करेंगे? आपके विचारसे शिक्षा का माध्यम देशभाषा होनी चाहिए और धार्मिक शिक्षाको भी दाखिल करना चाहिए?

मेरा खयाल है इन दो दोषोंको तो अवश्य दूर करना चाहिए। फिर बात रहेगी व्यक्तिगत तत्त्वकी। शिक्षकोंमें अपनेपनके भावकी भी कमी है। आज जैसे शिक्षक हैं उनकी अपेक्षा ज्यादा अच्छे दर्जेके शिक्षकोंकी जरूरत है, जिनके पीछे अपेक्षाकृत अच्छी परम्पराओंका बल हो। ये तीन बातें करनेसे निश्चय ही आवश्यक सुधार हो जायेगा।

क्या मेरा यह खयाल सही है कि सत्याग्रह आन्दोलनका ध्येय प्रधानतः या अधिकांशतः, इसके अनुयायियोंकी संख्याका खयाल रखे बिना सचाई और उच्च नैतिकताको अन्तःप्रतिष्ठित करना है?

जी हाँ, निश्चय ही इसके पीछे यही भावना है।

यानी संख्यासे अलग, इस चीजका तत्त्व स्वयं इसीमें निहित है?

हाँ, इसके दो सदस्य हों या एक इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।

क्या यह आन्दोलन पंजाबमें भी फैला है?

मेरा खयाल है, पंजाबमें यह बहुत अधिक फैला है। मैं अँगुली उठाकर यह तो नहीं बता सकता कि अमुक व्यक्तिने सत्याग्रहकी प्रतिज्ञापर हस्ताक्षर किये हैं, लेकिन मैं इस निष्कर्षपर अवश्य पहुँचा हूँ कि इस सिद्धान्तको ग्रहण करने और इसका उत्साहपूर्ण उत्तर देने में पंजाब, अगर भारतके अन्य हिस्सोंसे अधिक नहीं तो कम