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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सक्षम भी नहीं है। हो सकता है मेरा यह खयाल गलत हो, लेकिन निश्चय ही पंजाब भी इस दृष्टिसे उतना ही ग्रहणशील है जितना कि भारतका कोई और हिस्सा।

बम्बई सरकारके कानूनी सलाहकार श्री कैम्पके प्रश्नोंके उत्तरमें

श्री गांधी, में सत्याग्रह आन्दोलनके सम्बन्धमें बहुत ज्यादा सवाल पूछकर आपके धीरजकी परीक्षा नहीं लेना चाहता। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि आपने जो कुछ कहा है, उससे मेरी शंकाओंका तनिक भी समाधान हो पाया है। उसे जाने दीजिए; मेरा खयाल है, रौलट समितिको सिफारिशोंके सम्बन्ध में आपका जो विचार है, उसपर भी हममें सहमति नहीं दिखाई देती। में आपसे दो बातें अवश्य ही स्पष्ट कर देनेको कहूँगा। एक तो यह कि आप कहते हैं कि १२ तारीखका फौजी कानूनका आदेश सर्वथा अनुचित था। इस सम्बन्धमें क्या आप यह जानते हैं कि यह आदेश किन परिस्थितियोंमें दिया गया था?

मैं १२ तारीखको यहाँ था तो नहीं, लेकिन मैंने इसके बारेमें सुना अवश्य।

हाँ, आप १२ को यहाँ नहीं थे, १३ को आये। १२ की रातमें क्या-कुछ हुआ, वह आप मुझसे जान सकते हैं। हुआ यह कि जिस व्यक्तिके जिम्मे सेनाकी कमान थी वह हर चीजका विचार करनेके बाद इस निर्णयपर पहुँचा कि जो कुछ हो रहा था उससे गड़बड़ी पैदा हुए बिना न रहेगी। भीड़पर नियन्त्रण नहीं रखा जा सकता, अन्यत्र कहीं भी दंगा शुरू हो सकता है, और तब वह और उस समय उपलब्ध उसके अधीनस्थ लोग उस स्थितिका ठीकसे सामना नहीं कर पायेंगे। अतः उसने ऐसे आदेश जारी किये, जो परिणामकी दृष्टिसे बड़े सफल सिद्ध हुए। इस सम्बन्धमें आप क्या कहना चाहेंगे?

मैं इस सम्बन्धमें कुछ नहीं कहना चाहूँगा, क्योंकि जैसा मैंने कहा, जब में इसके सम्बन्धमें एक बाहरी आदमीकी हैसियत से बोला तब तो मैंने यही कहा कि यह चीज मुझे जँची नहीं, इसकी जरूरत भी समझमें नहीं आई और जो आदेश जारी किये गये, वे तो बिलकुल पसन्द नहीं आये।

पसन्द नहीं आये 'एक बाहरी आदमीकी हैसियतसे', यही न?

जी हाँ, बाहरी आदमीकी हैसियतसे, गैर-सैनिक आदमीकी हैसियतसे; स्वभावतः जिन अधिकारियोंको परिस्थितिका सामना करना है, मैं उन्हें तो इस मामलेमें काफी छूट दूँगा ही।

मान लीजिए में और आप वहाँ मौकेपर मौजूद सैनिकोंके अधिकारी होते, तब क्या आप इस आदेशको उचित मानेंगे?

इस सम्बन्धमें अपनी राय बता देना में काफी मानता हूँ—फिर उसकी जो भी कीमत हो। हाँ, यह माननेकी सावधानी तो बराबर बरतूँगा कि स्थितिकी परख सेना ज्यादा अच्छी तरह कर सकती थी। लेकिन अगर परिस्थितियों और तथ्योंकी जाँच-परख करनेके बाद मुझे अपना विचार व्यक्त करनेकी अनुमति दी जाये तो में यही "कहूँगा कि इन तथ्योंके कारण ऐसा आदेश जारी करनेकी जरूरत नहीं थी।