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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

द्वारा मारे गये? क्या आप मुझे इस सम्बन्धमें विशुद्ध तथ्योंसे अवगत करायेंगे, क्योंकि मैं स्वयं यह जाननेको बड़ा उत्सुक हूँ कि यह सब किन परिस्थितियोंमें हुआ या कि सचमुच ऐसा हुआ भी या नहीं? श्री चैटफील्डने उत्तरमें आपसे तत्सम्बन्धी जो भी सामग्री आपके पास हो देनेको कहा था और यह भी लिखा था कि अगर सम्भव हो तो ये लोग उनके पास जाकर उन्हें इस सम्बन्धमें सब कुछ बतायेंगे?

हाँ, मुझे याद है, उन्होंने ऐसा लिखा था।

लेकिन श्री चैटफील्ड तो इस सम्बन्धमें अब भी अन्धकारमें ही हैं?

कारण सिर्फ यह था कि हम उनके सामने प्रस्तुत करनेके लिए पर्याप्त सामग्री नहीं जुटा पाये थे और तबतक आदेश वापस ले लिये गये और मैं इस बातको अधिक तूल नहीं देना चाहता था।

क्या आप घायल हुए लोगोंमें से कुछ के नाम बता सकते थे?

हाँ, अगर मुझे याद दिलाया गया होता तो मैं दे सकता था।

लेकिन श्री चैटफील्डने तो आपसे कहा था; कहा था न?

हाँ, लेकिन जब मैंने देखा कि ये आदेश वापस ले लिये गये हैं तो फिर मुझे बातको और आगे बढ़ानेकी कोई इच्छा नहीं रह गई, क्योंकि मैं जानता था कि इस तरहकी बातों में किसी हदतक आकस्मिक रूपसे भी बहुत कुछ हो गया होगा; जिसका खयाल रखना जरूरी है, और में इस मामले में आगे कोई और जांच-पड़ताल नहीं करना चाहता था। और न उसके बाद में अहमदाबादमें कुछ खास समयतक रहा ही।

आपके पास जो जानकारी है उसके इस अंशके सम्बन्धमें में आपसे बस इतना कहना चाहता हूँ कि १० तारीख़की जैसी योजनाओंसे सम्बन्धित दूसरी गवाहियोंमें आपने जो कुछ कहा, उसके पीछे तो आपका मतलब ठीक वही कहनेका था जो कुछ आपने हमसे कहा है। लेकिन में यहाँ जरा यह भी कह देना चाहता हूँ कि आप उसके लिए जिस साक्ष्यका आधार लेते हैं वह उस साक्ष्यसे भिन्न है जिसे आपने बिना किसी उचित कारणके लोगोंके घायल कर दिये जानेके इन उदाहरणोंका आधार बनाया है। सो इसलिए कि आपके पास आकर यह कहनेवाले लोगोंको कि उन्होंने योजनापूर्वक मामूली ढंगके कुछ दंगे करवा दिये, आपसे केवल धिक्कार और तिरस्कार ही मिलता, लेकिन आपके पास आकर जो लोग यह कहते कि वे इस काममें घायल हो गये, उन्हें तो किसी तरह के धिक्कार- तिरस्कारका भय नहीं हो सकता था?

नहीं, नहीं हो सकता था।

तो दोनों वर्गोंके साक्ष्यों में यह अन्तर है। मेरा खयाल है, आपने वह बात इस आधारपर कही कि. . .

दोनों वर्गोंके साक्ष्योंका अलग-अलग मूल्यांकन करना मेरा काम नहीं है। मेरे कहने का मतलब यह है कि ऐसा नहीं हो सकता कि कोई आदमी सीधे मेरे पास आकर किसी घटनाका, उसने जैसा देखा है, उससे भिन्न चित्र प्रस्तुत करने लगेगा।