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उपद्रव जाँच समिति के सामने गवाही


मुझे तो लगता है कि अब हम इस बातकी और ज्यादा चर्चा नहीं कर सकते?

हाँ, लेकिन दरअसल में तो खुद आपसे भी और समिति से भी कहूँगा कि ऐसा बिलकुल नहीं मानना चाहिए कि मैं अपनी इस बातको आगे बढ़ाना चाहता हूँ। मैं यह नहीं कहता कि यह बात वहाँ कोई शिकायतके रूपमें कही गई है, लेकिन चूँकि इस सम्बन्धमें मुझे अपना मत देना ही है, इसलिए दे दिया है।

फिर एक दूसरा मुद्दा यह है कि आपने सैनिकों की ओरसे कुछ नहीं सुना। अगर आपको सैनिक पक्षकी परिस्थितियाँ भी मालूम होती तब कहीं आप यह कह सकते थे कि उन्होंने किसी व्यक्तिपर गोलियाँ चलाई या नहीं ऐसा भी तो हो सकता है कि कोई इक्की-दुक्की गोली (किसी चीजसे) टकराकर समकोणपर मुड़ जाये और इस तरह उधर खड़ा कोई व्यक्ति घायल हो जाये। लेकिन ऐसा कहना तो ठीक नहीं होगा कि यह सैनिकोंकी गलती थी?

नहीं, जिस तरहसे आप कह रहे हैं उस तरहसे तो नहीं ही।

और मेरा तो खयाल है कि यह बात इसी तरह कही जानी चाहिए।

लेकिन में समितिके ध्यान में जो मामला लाया हूँ और जिस मामलेके आधारपर मैंने यह निष्कर्ष निकाला है कि इन आदेशोंका पालन किया गया, वह मामला यह है कि इनमें से कुछ नौजवानोंने लोगोंके एक दलपर—चाहे उसमें १० व्यक्ति शामिल रहे हों या ११ या १० से भी कम—सचमुच गोलियाँ चलाईं और उन्हें इस तरहसे आगाह भी नहीं किया जिससे वे समझ पाते कि उनसे क्या करनेको कहा जा रहा है।

हाँ, लेकिन जैसा कि मेरा कहना है, आप इसका कोई वास्तविक उदाहरण तो नहीं दे सकते?

उदाहरण तो नहीं दे सकता, क्योंकि मुझे इस बातको आगे बढ़ानेकी इच्छा नहीं है। अगर होती तो मैं तैयार होकर आता। लेकिन जिस बड़े आन्दोलनमें सरकारने अपने लिए सिर्फ यश ही अर्जित किया है उस आन्दोलन में मैं एक छोटी-सी बातको बढ़ाकर बहुत बड़ा रूप नहीं देना चाहता। में इस घटनाको बढ़ा-चढ़ाकर नहीं दिखाना चाहता था और न श्री चैटफील्डको इस बारे में आगे और कष्ट ही देना चाहता था।

अध्यक्षसे : बम्बई के इस मामलेके सम्बन्धमें केवल एक बात और रह गई है। इस समय इस मामले में सरकारका पक्ष प्रस्तुत करनेके लिए कोई व्यक्ति उपस्थित नहीं है, क्योंकि मालूम नहीं था कि यह मामला भी उठाया जायेगा, और परिणामतः किसीको भी श्री गांधीसे इस सम्बन्धमें प्रश्न पूछनेका निर्देश नहीं दिया गया।

अध्यक्ष : श्री गांधीने जितना साक्ष्य अबतक दिया है, उससे कुछ बहुत अधिक बात तो नहीं निकलती।

श्री कैम्प : उन्होंने इसी एक बातपर ज्यादा जोर दिया कि घुड़सवार सैनिकोंने लोगोंपर घोड़े दौड़ाये लेकिन यह तो वे सिद्ध नहीं कर पाये।